-- मंजुल
सुमनों की सुगन्ध से, नित्य
करें माँ का वन्दन। नव-सम्वत्सर
आज तुम्हारा, जन-जन
करता अभिनन्दन।। -- पावन
वसुन्धरा पर सुख की, हरियाली
छा जायें, समय-समय
पर मेघ-घटा, जल और
अन्न बरसायें, उपवन में सबके ही महके, चारों
ओर सुगन्धित चन्दन। नव-सम्वत्सर
आज तुम्हारा, जन-जन
करता अभिनन्दन।। -- सत्य-एकता, की धारा, कलकल-छलछल
भरपूर बहे, असत्य-हिंसा, वैर-भाव का, कीट
हमेशा दूर रहे, सुख की
गागर भरी रहे, जीवन
में जागे स्पन्दन। नव-सम्वत्सर
आज तुम्हारा, जन-जन
करता अभिनन्दन।। -- आड़ धर्म
की लेकर, भारत
में नही कोई दंगा हो। जन,गण,मन हो वैभवशाली, कोई न
भूखा-नंगा हो।। कोई
कहीं न आहत हो, मिट जाय
रक्तपात क्रन्दन। नव-सम्वत्सर
आज तुम्हारा, जन-जन
करता अभिनन्दन।। -- प्यार
करें भारत-माता को, जो भी
यहाँ निवासी हैं। याद रहे
सबसे पहले, हम इसी
देश के वासी हैं।। सामाजिक-समरसता
का, हो जाय
देश में गठबन्धन। नव-सम्वत्सर
आज तुम्हारा, जन-जन
करता अभिनन्दन।। -- कभी ठेस
मत पहुँचाना, महापुरुषों
की अभिलाषा को। सब
धर्मों का मान करें, हम
प्यार करें निज भाषा को।। देवनागरी
को अपनायें, वसुदेव-देवकी, पार्वती के, कहलायें
प्यारे नन्दन। नव-सम्वत्सर
आज तुम्हारा, जन-जन
करता अभिनन्दन।। -- मंगलदायी
सम्वत्सर रहे, जीवन
में सुखद सवेरा हो। उर में
हों उरबसी उमंगें, सुख का
सघन बसेरा हो।। सच्चे
अर्थों में तब होगा, नूतन का
सच्चा अभिनन्दन। नव-सम्वत्सर
आज तुम्हारा, जन-जन
करता अभिनन्दन।। -- |
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मंगलवार, 9 अप्रैल 2024
गीत "नव-सम्वत्सर का अभिनन्दन" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
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