सबके मन को मोहते, अमलतास के फूल। शीतलता को बाँटते, मौसम के
अनुकूल।१। -- सूरज झुलसाता बदन, बढ़ा धरा का
ताप। अमलतास तुम पथिक का, हर लेते
सन्ताप।२। -- मौन तपस्वी से खड़े, सहते लू की
मार। अमलतास के पेड़ से, बहती सुखद
बयार।३। -- पीले झूमर पहनकर, तन को लिया
सँवार। किसे रिझाने के लिए, करते हो
सिंगार।४। -- विपदाओं को झेलना, तजना मत
मुस्कान। अमलतास से सीख लो, जीवन का यह
ज्ञान।५। -- गरमी से जब मन हुआ, राही का बेचैन। छाया का छप्पर छवा, देते तुम
सुख-चैन।६। -- गरम थपेड़े मारती, जब गरमी की
धूप। अमलतास का तब हमें, अच्छा लगता “रूप”।७। -- |
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शुक्रवार, 12 अप्रैल 2024
दोहे "गरमी की धूप" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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