कल तक कितने मस्त थे, अब हैं सारे त्रस्त।निर्वाचन ने कर दिये, सभी हौसले पस्त।।--शासक सब खाते रहे, नोच-नोचकर देश।वीराना सा कर दिया, वासन्ती परिवेश।।छेद स्वयं के पात्र में, करने लगे दलाल।जनता आहत हो रही , दशा देख विकराल।।मत के प्रबल प्रहार से, दुर्ग करेगी ध्वस्त।निर्वाचन ने कर दिये, सभी हौसले पस्त।।--खाती छोटी मीन को, बड़ी-बड़ी जब मीन।मठाधीश रहते सदा, अपने सुख में लीन।।लोकतन्त्र में तब बचा, मत का एक विकल्प।अच्छों को मत दीजिये, ले करके संकल्प।।दर-दर ठोकर खा रहे, कल तक जो थे व्यस्त।निर्वाचन ने कर दिये, सभी हौसले पस्त।।--काम नहीं करता जहाँ, यन्त्र-तन्त्र का मन्त्र।टिका यहाँ मतदान पर, जनता का जनतन्त्र।।खून-खराबे से नहीं, चलता कुछ भी काम।परिवर्तन करता सदा, लोकतन्त्र में आम।।जनता बेईमान का, करती सूरज अस्त।निर्वाचन ने कर दिये, सभी हौसले पस्त।।--निर्धन को धनवान सा, नहीं सुलभ है न्याय।कदम-कदम पर बढ़ रहा, भेद-भाव अन्याय।।भारत माता कर रही, कब से यही पुकार।भ्रष्ट सियासत की नहीं, भारत को दरकार।।संसद में पहुँचे नहीं, रिश्वत के अभ्यस्त।निर्वाचन ने कर दिये, सभी हौसले पस्त।।
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रविवार, 21 अप्रैल 2024
दोहागीत "यन्त्र-तन्त्र का मन्त्र" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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