-- चिड़िया अपने नीड़ में, करती करुण पुकार। सत्याग्रह की आड़ में, राज करें मक्कार।। ।1। आम जरूरत का हुआ, मँहगा सब सामान। ऐसी हालत देख कर, जनता है हैरान।। नेता रहते ठाठ से, मरते हैं निर्दोष। पहन केंचुली हंस की, गिना रहे गुण-दोष।। तेल कान में डाल कर, सोई है सरकार। सत्याग्रह की आड़ में, राज करें मक्कार।। ।2। बातें बहुत लुभावनी, नहीं इरादे नेक। मछुआरे तालाब में, जाल रहे हैं फेंक।। सब्जी और अनाज के, बढ़े हुए हैं भाव। अब तक भी आया नहीं, कीमत में ठहराव।। निर्धन जनता के लिए, महँगाई उपहार। सत्याग्रह की आड़ में, राज करें मक्कार।। ।3। सबको अपनी ही पड़ी, जाये भाड़ में देश। जनता को भड़का रहे, भर साधू का भेष।। जनसेवक करने लगे, जनता का आखेट। घोटाले करके भरें, मोटे अपने पेट।। बात-बात में हो रही, आपस में तकरार। सत्याग्रह की आड़ में, राज करें मक्कार।। ।4। अपने झण्डे के लिए, डण्डे रहे सँभाल। हालत अपने देश की, आज हुई विकराल।। माँगा पानी जब कभी, लपटें आयीं पास। जलते होठों की यहाँ, कौन बुझाये प्यास।। कदम-कदम पर राह में, सुलग रहे अंगार। सत्याग्रह की आड़ में, राज करें मक्कार।। ।5। शाखा पर बैठा हुआ, पाखी गाता गीत। कैसे उसका सुर सधे, बिगड़ गया संगीत।। जनता के ही तन्त्र में, जनता की है मात। धूप “रूप” की ढल गयी, आयी काली रात। नौका लहरों में फँसी, बेबस खेवनहार। सत्याग्रह की आड़ में, राज करें मक्कार।। -- |
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