-- समय-समय की बात है, समय-समय का फेर। मिट्टी को कंचन करे, नहीं
लगाता देर।। -- समय पड़े पर गधे को, बाप बनाते लोग। समय बनाता सब जगह, कुछ संयोग-वियोग।। समय न करता है दया, जब अपनी
पर आय। ज्ञानी-ध्यानी-बली को, देता धूल
चटाय।। समय अगर अनुकूल है, कायर लगते शेर। मिट्टी को कंचन करे, नहीं
लगाता देर।। -- समय-समय की बात है, समय-समय
के ढंग। जग में होते समय के, बहुत
निराले ढंग।। पल-पल में है बदलता, सरल कभी
है वक्र। रुकता-थकता है नहीं, कभी समय
का चक्र।। राजाओं के महल भी, होते देखे ढेर। मिट्टी को कंचन करे, नहीं
लगाता देर।। -- गया समय आता नहीं, करनी को
कर आज। मत कर सोच-विचार तू, करले
पूरे काज।। हारा है कर्तव्य से, दुनिया में अधिकार। श्रम-निष्ठा से ही सदा, बनता है आधार।। ईश्वर के घर देर है, समझो मत अंधेर। मिट्टी को कंचन करे, नहीं
लगाता देर।। -- |
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शनिवार, 20 अप्रैल 2024
दोहागीत "समय-समय के ढंग" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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