-- सरदी का मौसम गया, हुआ
शीत का अन्त। खुशियाँ सबको बाँटकर, वापिस
गया बसन्त।1। -- गरम हवा चलने लगी, फसल
गयी है सूख। घर में मेहूँ आ गये, मिटी
कृषक की भूख।2। -- नवसम्वत्सर आ रहा, सूरज
हुआ जवान। नभ से आग बरस रही, तपने
लगे मकान।3। -- हिमगिरि से हिम पिघलता, चहके
चारों धाम। हरि के दर्शनमात्र से, मिटते
ताप तमाम।4। -- दोहों में ही निहित है, जीवन
का भावार्थ। गरमी में अच्छे लगें, शीतल
पेय पदार्थ।5। -- करता लू का शमन है, खरबूजा-तरबूज। ककड़ी-खीरा बदन को, रखते
हैं महफूज।6। -- ठण्डक देता सन्तरा, ताकत
देता सेब। महँगाई इतनी बढ़ी, खाली
सबकी जेब।7। -- |
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गुरुवार, 4 अप्रैल 2024
दोहे "तपने लगे मकान" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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