जब भी सिर को है मुंडाया, धड़ाधड़ ओले पड़े।
"उच्चारण" 1996 से समाचारपत्र पंजीयक, भारत सरकार नई-दिल्ली द्वारा पंजीकृत है। यहाँ प्रकाशित किसी भी सामग्री को ब्लॉग स्वामी की अनुमति के बिना किसी भी रूप में प्रयोग करना© कॉपीराइट एक्ट का उलंघन माना जायेगा। मित्रों! आपको जानकर हर्ष होगा कि आप सभी काव्यमनीषियों के लिए छन्दविधा को सीखने और सिखाने के लिए हमने सृजन मंच ऑनलाइन का एक छोटा सा प्रयास किया है। कृपया इस मंच में योगदान करने के लिएRoopchandrashastri@gmail.com पर मेल भेज कर कृतार्थ करें। रूप में आमन्त्रित कर दिया जायेगा। सादर...! और हाँ..एक खुशखबरी और है...आप सबके लिए “आपका ब्लॉग” तैयार है। यहाँ आप अपनी किसी भी विधा की कृति (जैसे- अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कर सकते हैं। बस आपको मुझे मेरे ई-मेल roopchandrashastri@gmail.com पर एक मेल करना होगा। मैं आपको “आपका ब्लॉग” पर लेखक के रूप में आमन्त्रित कर दूँगा। आप मेल स्वीकार कीजिए और अपनी अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कीजिए। |

मंगलवार, 13 अक्तूबर 2009
"धड़ाधड़ ओले पड़े" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
जब भी सिर को है मुंडाया, धड़ाधड़ ओले पड़े।
बहुत बढिया रचना है बधाई।
जवाब देंहटाएंशास्त्री जी नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंजब भी सिर को है मुंडाया, धड़ाधड़ ओले पड़े।
जब भी पग को है बढ़ाया, राह में गोले पड़े।।
यही होता है आज इस दौर में
हक़ीक़त बयां कर दी आपने शास्त्री जी।
जवाब देंहटाएंआज के परिवेश के अनुसार एकदम सटीक रचना !
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत बधाईयां !
दुर-नीति से हारी विदुर की नीति है,
जवाब देंहटाएंछल-कपट भारी, कुटिल सब रीति है,
शस्त्र लेकर सन्त आया, ज्ञान गठरी में सड़े।
जब भी पग को है बढ़ाया, राह में गोले पड़े।।
बहुत बढिया, एकदम सटीक !
bahut hi sundar aur sateek rachna......... wah!
जवाब देंहटाएंबहुत ही सारगर्भित और सटीक रचना........
जवाब देंहटाएंमित्रता कैसे निभे, जब स्वार्थ रग-रग में भरा,
जहर से सींचा हुआ, पादप नही होगा हरा,
रंग में भँग आजकल के दोस्त हैं घोले खड़े।
जब भी पग को है बढ़ाया, राह में गोले पड़े।।
वाह वाह ...........बधाई !
एक दम सटीक जी बहुत सुंदर.
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
इतने प्यारे ढंग से सच्चाई बयां कर दी आपने....
जवाब देंहटाएंsachchayiko sundar shabdon se sanjoya hai.
जवाब देंहटाएंमित्रता कैसे निभे, जब स्वार्थ रग-रग में भरा,
जवाब देंहटाएंजहर से सींचा हुआ, पादप नही होगा हरा,
रंग में भँग आजकल के दोस्त हैं घोले खड़े।
जब भी पग को है बढ़ाया, राह में गोले पड़े।।
अरे वाह शास्त्री जी..बार बार गुनगुना रहा हूँ क्या सुंदर कविता प्रस्तुत की..बहुत बहुत बधाई!!!
सुन्दर रचना के लिए दिल से बधाई!!
जवाब देंहटाएंवाह बहुत बढ़िया और सठिक रचना लिखा है आपने! बिल्कुल सच्चाई को शब्दों में पिरोया है !
जवाब देंहटाएंशस्त्र लेकर सन्त आया, ज्ञान गठरी में सड़े।
जवाब देंहटाएंइस बात के अनेक अर्थ निकलते है। यह हमारे जीवन के नियामकों के वास्तविक चरित्र का सही आकलन है ।
मित्रता कैसे निभे, जब स्वार्थ रग-रग में भरा,
जवाब देंहटाएंजहर से सींचा हुआ, पादप नही होगा हरा,
आपकी खासियत है कि आप सरल शब्दो मे जीवन के सार को व्यक्त कर जाते है.
बहुत सुन्दर
शास्त्री जी, इस बेहतरीन रचना के लिए आपको साधुवाद!!
जवाब देंहटाएं"झूठ की पाकर गवाही, सत्यता है जेल में,
जवाब देंहटाएंहो गयी भीषण लड़ाई, दम्भ के है खेल में,
होश है अपना गँवाया, बे-वजह भोले अड़े।
जब भी पग को है बढ़ाया, राह में गोले पड़े ।"
बहुत ही सशक्त अभिव्यक्ति ।
आभार ।
" bahut hi accchi rachana .."
जवाब देंहटाएं-----eksacchai { AAWAZ }
http://eksacchai.blogspot.com
मित्रता कैसे निभे, जब स्वार्थ रग-रग में भरा,
जवाब देंहटाएंजहर से सींचा हुआ, पादप नही होगा हरा
वाह शास्त्री जी, क्या बात कही है...ऐसा लगता है कि आपने वर्तमान की नब्ज़ पकड़कर ही यह अबिव्यक्ति दी है....
मित्रता कैसे निभे, जब स्वार्थ रग-रग में भरा,
जवाब देंहटाएंजहर से सींचा हुआ, पादप नही होगा हरा
इस सुन्दर रचना के लिये बधाई और आपकी कर्मठता को भी सलाम। दीपावली की शुभकामनायें
कहावतों को सुंदर तरीके से पिरोया है आपने।
जवाब देंहटाएं----------
डिस्कस लगाएं, सुरक्षित कमेंट पाएँ
सत्यता के बेहद निकट यह रचना बहुत ही अच्छी लगी, आभार
जवाब देंहटाएंवाह बहुत खूब कहा है sir!
जवाब देंहटाएं