रूठे
सुजन मनाइए, करके यत्न हजार।।
होली के
त्यौहार में, बाँटो सबको प्यार।
रंगों
की बौछार से, निर्मल करो विकार।।
बच्चों-बूढ़ों
के लिए, रहना सदा उदार।
रंग-अबीर-गुलाल
है, होली का उपहार।।
हँसी-ठिठोली
को करो, मर्यादा के संग।
जो लगवाये
प्यार से, उसे लगाओ रंग।।
देख खेत
में अन्न को, होता हर्ष अपार।
इसीलिए
मधुमास में, आता ये त्यौहार।।
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मंगलवार, 11 मार्च 2014
"दोहे-होली की सौगात" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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पकी खेती देखि के, गरब किया किसान ।
जवाब देंहटाएंअजहूँ झोला बहुंत है, घर आवै तब जान ।|
----- || संत कबीर दास ॥ -----
भावार्थ : -- अपनी तैयार उपज को देखकर किसान फूला नहीं समा रहा । अभी तो बहुंत से बिघन है, बाधाएं हैं, अड़चने हैं झमेले हैं, बिघनहारी ने भी हार त्याग दिया है जब उपज निर्विध्न स्वरुप में घर आ जाए तब जानना ||
होली का आनन्द मनोहर।
जवाब देंहटाएंमनभावन दोहे
जवाब देंहटाएंहर रंग को अपने में समेटे बढ़ियाँ सीख देती हुयी।
बहुत लाज़वाब
बहुत कोमल रचनातमक जनरंजन कल्याण का भाव लिए हैं सभी दोहा छंद
जवाब देंहटाएंआपकी टिप्पणियाँ हमारी उत्प्रेरक धरोहर बनती हैं।
बढ़िया है ये उपहार।
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया होली की धूम मचाती रंगमय सार्थक प्रस्तुति।
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