धानी धरती ने पहना नया घाघरा।
रूप कञ्चन कहीं है, कहीं है
हरा।।
पल्लवित हो रहा, पेड़-पौधों का तन, हँस रहा है चमन, गा रहा है सुमन, नूर ही नूर है, जंगलों में भरा।
रूप कञ्चन कहीं है, कहीं है
हरा।।
देख मधुमास की यह बसन्ती छटा, शुक सुनाने लगे, अपना सुर चटपटा, पंछियों को मिला है सुखद आसरा। रूप कञ्चन कहीं है, कहीं है हरा।। देश-परिवेश सारा महकने लगा, टेसू अंगार बनकर दहकने लगा, सात रंगों से सजने लगी है धरा। रूप कञ्चन कहीं है, कहीं है हरा।। |
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बहुत सुंदर रचना.
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर !
जवाब देंहटाएंशानदार रूप धरा का |
जवाब देंहटाएंआशा
प्रकृति का अद्भुत रूप..
जवाब देंहटाएंबढ़िया प्रस्तुति-
जवाब देंहटाएंआभार -
प्रफुल्लित कर देनेवाला चित्रण -प्रकृति कितनी मनोरम और आनन्दमयी है !
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