सितारों के बिना सूना गगन है
बहारों के बिना सूना चमन है
भजन-पूजन, कथा और कीर्तन में
सुधा के बिन अधूरा आचमन है
नजारे हैं, नजाकत है, नफासत है,
वफा के बिन अधूरा ये वतन है
सफर में साथ कब देते मुसाफिर
अकेले ही सभी करते गमन हैं
सलामत है समन्दर भी तभी तक
जमीं पर जब तलक गंगो-जमुन हैं
लुभाते रंग वाले वस्त्र सबको
मेरी तकदीर में सादा कफन है
अस्त
सूरज का खिलेगा “रूप” कैसे
उदित
को तो सभी करते नमन हैं
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शनिवार, 22 मार्च 2014
"ग़ज़ल-बहारों के बिना सूना चमन है" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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वाह-वाह. खूबसूरत हिन्दी गजल.
जवाब देंहटाएंसारगर्भित...अति सुंदर...
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंचर्चा मंच पे ये गज़ल बांचते बांचते पता चल गया था ये पैरहन ये गज़ल आपकी है।
भजन-पूजन, कथा और कीर्तन में
सुधा के बिन अधूरा आचमन है
अस्त सूरज का खिलेगा “रूप” कैसे
जवाब देंहटाएंउदित को तो सभी करते नमन हैं
सही है !!
सुन्दर रचना।
जवाब देंहटाएं