नज़रों को भाया नज़ारों का
मौसम
बागों
में छाया बहारों का मौसम
लरजती हुई गेहूँ की बालियों को
बहुत रास आया बयारों का मौसम
अमावस
में जब चाँद अवकाश लेता
गगन
ने दिखाया सितारों का मौसम
मची
धूम चारों तरफ फाग की जब
चहकता बनाया का हुलारों का मौसम
बसन्ती
हुआ “रूप” कुदरत का जब से
तभी हमने पाया फुहारों का
मौसम
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रविवार, 9 मार्च 2014
"ग़ज़ल-बहारों का मौसम" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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रूप बदलता मौसम आया।
जवाब देंहटाएंसुंदर !
जवाब देंहटाएंसुंदर मौसम प्यारा मौसम।
जवाब देंहटाएंbahut sundar v suhani rachna .badhai
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति .बधाई
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तुति व अभिव्यक्ति...
जवाब देंहटाएंसुंदर और मोसम के अनुकूल रचना......आभार महोदय....
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