आज एक ग़ज़ल
गुरूसहाय भटनागर बदनाम की कलम से
अपना बना गया कोई
अपना ज़लवा दिखा गया कोई
दिल को हँसकर जला गया कोई
दर्दे ग़म फिर बढ़ा गया कोई
हम को अपना बना गया कोई
कल जो करता था प्यार के वादे
आज नज़रें चुरा गया कोई
वो जो रुकता तो बात कर लेते
बिन बताए चला गया कोई
याद उल्फ़त की अब सताती है
मेरे आँसू बहा गया कोई
उनका ‘बदनाम’ जिक्र अब छोड़ो
बेवफ़ा था रुला गया कोई
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(गुरूसहाय भटनागर बदनाम)
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सोमवार, 24 मार्च 2014
"ग़ज़ल-हमको अपना बना गया कोई" (गुरूसहाय भटनागर बदनाम)
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बदनाम जी की शानदार गज़ल...
जवाब देंहटाएंअहा, आनन्ददायक।
जवाब देंहटाएंबदनाम जी !होली की वधाई ! रचना में रस भी है भावना भी !!
जवाब देंहटाएंवाह !
जवाब देंहटाएंक्या बात है। लाजवाब प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएं''badnam '' ji kee gazal bahut hi sateek v sundar lagi .is prastuti hetu aapka hardik aabhar
जवाब देंहटाएंvery nice presentation.thanks
जवाब देंहटाएंलाजवाब प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबेहद उम्दा..
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