माँ मेरी रचना में, कुछ शब्द सरल भर दो।
गीतों के सागर से, सब दूर गरल कर दो।।
दिन-रात तपस्या कर, मैंने पूजा तुमको,
जीवन भर का मेरा, संधान सफल कर दो।
गीतों के सागर से, सब दूर गरल कर दो।।
कुछ भी तो नहीं मेरा, माँ सब कुछ है तेरा,
इस रीती गागर में, निज स्नेह सबल भर दो।
गीतों के सागर से, सब दूर गरल कर दो।।
लिखता हूँ जो कुछ मैं, वो धूमिल हो जाता,
मसि देकर माता तुम, छवि धवल-प्रबल कर दो।
गीतों के सागर से, सब दूर गरल कर दो।।
जितना माँगा मैंने, उससे है अधिक दिया,
मनके मनकों को तुम, माता उज्जवल कर दो।
गीतों के सागर से, सब दूर गरल कर दो।।
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मंगलवार, 18 मार्च 2014
"माँ शब्द सरल भर दो" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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अच्छी है सरस्वती वंदना।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर ।
जवाब देंहटाएंbahut sundar vandan
जवाब देंहटाएंमाँ मेरी रचना में, कुछ शब्द सरल भर दो।
जवाब देंहटाएंगीतों के सागर से, सब दूर गरल कर दो।।
भावमय करते शब्दों का संगम ........... इस उत्कृष्ट पोस्ट के लिये बधाई
सादर
बहुत सुन्दर रचना..
जवाब देंहटाएंमाँ की वंदना सुन्दर शब्दों में !
जवाब देंहटाएंमनके मनकों को तुम, माता उज्जवल कर दो।
जवाब देंहटाएंगीतों के सागर से, सब दूर गरल कर दो।।..बहुत सुन्दर
सुंदर सरस्वती वंदना...
जवाब देंहटाएंशब्द रहे हर समय प्रतीक्षित।
जवाब देंहटाएं