जननी को शत्-शत् नमन
नारी होता में अगर, करने पड़ते काम। दिन में पलभर भी नहीं, मिल पाता आराम।१। -- मेरे सरल सुभाव पर, मिलता ये उपहार। सास-ननद देतीं मुझे, तानों की बौछार।२।
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देते पग-पग पर मुझे, साजन भी सन्ताप। लेकिन महिला मित्र से, हँस-हँस करते बात।३। -- सहती ज़ुल्म समाज के, दुनिया भर में नार। अग्निपरीक्षा में गये, जीवन कई हजार।४। -- जातक जनने में मुझे, मिलता कष्ट अपार। सहनी होती वेदना, मुझको बारम्बार।५। -- बहुत-बहुत आभार है, जग के सिरजनहार। नर का मुझको रूप दे, किया बहुत उपकार।६। -- कहने को दुश्मन नहीं, लेकिन शत्रु हजार। जग की जननी नार को, अबला रहे पुकार।७। -- ममता का पर्याय है, दुनिया की हर नार। नारी तेरे “रूप” को, नतमस्तक शत् बार।८। -- नारी का अब तक नहीं, कोई बना विकल्प। करती है परिवार का, नारी काया-कल्प।९। -- नारी की महिमा करूँ, कैसे आज बखान। कम पड़ जाते शब्द हैं, करने को गुणगान।१०। |
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रविवार, 24 मई 2015
दोहे "किया बहुत उपकार" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
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