हर किसी की ज़िन्दग़ी तो, है अधूरी ज़िन्दग़ी।
बाँध लो बिस्तर जहाँ से, हो चुकी अब बन्दगी।।
इक अधूरी प्यास को, सब साथ लेकर जायेंगे,
प्यार के लम्हें दुबारा, लौट कर नहीं आयेंगे,
काम अच्छे कर चलो, होगी नहीं शरमिन्दगी।
बाँध लो बिस्तर जहाँ से हो चुकी अब बन्दगी।।
कण्टकों की राह पर, काँटें गड़ेंगे पाँव में,
रात दिन चलना पड़ेगा धूप में और छाँव में,
स्वर्ग होगा भाग्य में या फिर नरक की गन्दगी।
बाँध लो बिस्तर जहाँ से हो चुकी अब बन्दगी।।
जब चलेगी बात गलियों में, किसी की प्रीत की,
गुन-गुनायेगें कली, तब लोग मेरे गीत की,
तब कोई गुलशन खिलेगा, जी उठेगी ज़िन्दग़ी।
बाँध लो बिस्तर जहाँ से हो चुकी अब बन्दगी।।
हर किसी की ज़िन्दग़ी तो, है अधूरी ज़िन्दग़ी। बाँध लो बिस्तर जहाँ से हो चुकी अब बन्दगी। |
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