मेरे विचार से सूअर पर यह इकलौती रचना है। -- गोरा-चिट्टा कितना अच्छा। लेकिन हूँ सूअर का बच्चा।। लेकिन मुझको गन्दा कहते।। -- मेरी बात सुनो इन्सानों। मत अपने को पावन मानों।। -- भरी हुई सबके कोटर में। तीन किलो गन्दगी उदर में।। -- श्रेष्ठ योनि के हे नादानों। सुनलो धरती के भगवानों।। -- तुम मुझको चट कर जाते हो। खुद को मानव बतलाते हो।। -- भेद-भाव नहीं मुझको आता। मेरा दुनिया भर से नाता।। -- ऊपर वाले की है माया। मुझे मिली है सुन्दर काया।। -- साफ सफाई करता बेहतर। मैं हूँ दुनियाभर का मेहतर।। -- |
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मंगलवार, 13 अक्तूबर 2020
बालकविता "कितनी सुन्दर मेरी काया" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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वाह!!!
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर बाल कविता
साफ सफाई करता बेहतर।
मैं हूँ दुनियाभर का मेहतर।।
लाजवाब...
बहुत खूब !!
जवाब देंहटाएंबेहतरीन सृजन ।
सूअर के दिन भी बदले
जवाब देंहटाएंवाह!! बेहतरीन बाल कविता....
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 15.10.2020 को चर्चा मंच पर दिया जाएगा। आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी|
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
दिलबागसिंह विर्क
नमन
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना
वाह बहुत खूब आपकी लेखनी को शत शत नमन आदरणीय शास्त्री जी
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