-- अपने छोटे से जीवन में कितने सपने देखे मन में -- इठलाना-बलखाना सीखा हँसना और हँसाना सीखा सखियों के संग झूला-झूला मैंने इस प्यारे मधुबन में कितने सपने देखे मन में -- भाँति-भाँति के सुमन खिले थे आपस में सब हिले-मिले थे प्यार-दुलार दिया था सबने बचपन बीता इस गुलशन में कितने सपने देखे मन में -- एक समय ऐसा भी आया जब मेरा यौवन गदराया विदा किया बाबुल ने मुझको भेज दिया अनजाने वन में कितने सपने देखे मन में -- मिला मुझे अब नया बसेरा नयी शाम थी नया सवेरा सारे नये-नये अनुभव थे अनजाने से इस आँगन में कितने सपने देखे मन में -- कुछ दिन बाद चमन फिर महका बिटिया आयी, जीवन चहका चहका लेकिन करनी पड़ी विदाई भेज दिया नूतन उपवन में कितने सपने देखे मन में -- नारी की तो कथा यही है आदि काल से प्रथा रही है पली कहीं तो, फली कहीं है दुनिया के उन्मुक्त गगन में कितने सपने देखे मन में -- |
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शनिवार, 31 अक्तूबर 2020
गीत "नारी की तो कथा यही है" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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बहुत सुंदर सृजन। बाकी "चल उड़ जा रे पंक्षी की ये देश हुआ बेगाना"
जवाब देंहटाएंसत्य से भरपूर रचना, बहुत सुंदर ,नारी की तो कथा यही है
जवाब देंहटाएंवन्दन
जवाब देंहटाएंउम्दा लेखन हेतु साधुवाद
बहुत कम लोगों के समझ में
आ पाता है नारी का क्रंदन
जवाब देंहटाएंनारी की तो कथा यही है
आदि काल से प्रथा रही है
पली कहीं तो, फली कहीं है
दुनिया के उन्मुक्त गगन में
हृदयस्पर्शी सृजन ।
नारी की तो कथा यही है
जवाब देंहटाएंआदि काल से प्रथा रही है
पली कहीं तो, फली कहीं है
दुनिया के उन्मुक्त गगन में
कितने सपने देखे मन में
उत्कृष्ट काव्य
साधुवाद