मैं हिमगिरि हूँ सच्चा प्रहरी, रक्षा करने वाला हूँ। शीश-मुकुट हिमवान अचल हूँ, सीमा का रखवाला हूँ।। मैं अभेद्य दुर्ग का, उन्नत बलशाली परकोटा हूँ। मैं हूँ वज्र समान हिमालय, कोई न छोटा-मोटा हूँ।। मुझको मत पाषाण समझना, पत्थर नहीं शिवाला हूँ। शीश-मुकुट हिमवान अचल हूँ, सीमा का रखवाला हूँ।। माँ की आन-बान की खातिर, सजग हमेशा खड़ा हुआ हूँ, दुश्मन को ललकार रहा हूँ, मुस्तैदी से अड़ा हुआ हूँ, पाक-चीन की सीमाओं पर, मैं अभेद्य मतवाला हूँ। शीश-मुकुट हिमवान अचल हूँ, सीमा का रखवाला हूँ।। प्राणों से प्यारी माता के लिए, वीर बलिदान हो गये। संगीनों पर माथा रखके, सरहद पर कुर्बान हो गये।। सिंहासन हूँ मैं महेश का, मैं ही तो मृगछाला हूँ। शीश-मुकुट हिमवान अचल हूँ, सीमा का रखवाला हूँ।। मैं भारत का जन-जीवन हूँ, जल की उद्गम-धारा हूँ। गंगा-यमुना से धरती का, मैंने रूप सँवारा है। दुष्टों का संहारक हूँ मैं, माता जी का भाला हूँ। शीश-मुकुट हिमवान अचल हूँ, सीमा का रखवाला हूँ।। |
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शनिवार, 17 अक्तूबर 2020
गीत "मैं हिमगिरि हूँ" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
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वाह
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंहिमालय पर्वत के गौरव की महत्ता का बखान करता अत्यंत सुन्दर सरस सृजन.
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