मैं अपनी मम्मी-पापा के, नयनों का हूँ नन्हा-तारा। मुझको लाकर देते हैं वो, रंग-बिरंगा सा गुब्बारा।। -- मुझे कार में बैठाकर, वो रोज घुमाने जाते हैं। पापा जी मेरी खातिर, कुछ नये खिलौने लाते हैं।। -- मैं जब चलता ठुमक-ठुमक, वो फूले नही समाते हैं। जग के स्वप्न सलोने, उनकी आँखों में छा जाते हैं।। -- ममता की मूरत मम्मी-जी, पापा-जी प्यारे-प्यारे। मेरे दादा-दादी जी भी, हैं सारे जग से न्यारे।। -- सपनों में सबके ही, सुख-संसार समाया रहता है। हँसने-मुस्काने वाला, परिवार समाया रहता है।। -- मुझको पाकर सबने पाली हैं, नूतन अभिलाषाएँ। क्या मैं पूरा कर कर पाऊँगा, उनकी सारी आशाएँ।। -- मुझको दो वरदान प्रभू! मैं सबका ऊँचा नाम करूँ। मानवता के लिए जगत में, अच्छे-अच्छे काम करूँ।। -- |
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बुधवार, 21 अक्तूबर 2020
बालकविता "सबका ऊँचा नाम करूँ" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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मुझको दो वरदान प्रभू!
जवाब देंहटाएंमैं सबका ऊँचा नाम करूँ।
मानवता के लिए जगत में,
अच्छे-अच्छे काम करूँ।।
अति सुन्दर सुन्दर बालगीत।
बहुत ही सुंदर बालगीत।
जवाब देंहटाएंसुन्दर बालगीत....
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 22.10.2020 को चर्चा मंच पर दिया जाएगा। आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी|
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
दिलबागसिंह विर्क
वाह बेहद खूबसूरत बालगीत।
जवाब देंहटाएं