(१) सात रंग से भरा, फाग है ज़िन्दग़ी दोस्ती का चमन, बाग है ज़िन्दग़ी मत ग़लत सुर लगाना, कभी भी यहाँ गीत और प्रीत का राग है ज़िन्द़गी (२) आग को आग समझो, जलाती है ये अपनी औकात सबको बताती है ये दिल के ज़ज़्बात से खेलना मत कभी, अच्छे-अच्छों के दिल को सताती है ये (३) श्वेत परिधान हैं, सादगी के लिए सभ्यता है बनी, आदमी के लिए दाग माथे का हो या हो पौशाक का दाग़ तो दाग़ है ज़िन्दग़ी के लिए (४) कहीं चन्दा चमकता है, कहीं सूरज निकलता है नहीं रुकता-नहीं थकता, समय का चक्र चलता है लड़ा तूफान से जो भी, सिकन्दर बन गया वो ही, उजाले के लिए रातों में, नन्हा दीप जलता है (5) कुटिलता के भाव को पहचानते हैं शत्रुता दिल में नहीं हम ठानते हैं वो चलाते जा रहे हैं तीर अपने, किन्तु हम चुपचाप सहना जानते हैं |
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रविवार, 13 मार्च 2022
पाँच मुक्तक "गीत और प्रीत का राग है ज़िन्द़गी" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंनमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (14 मार्च 2022 ) को 'सपेरे, तुम्हें लगता है तुम साँप को नचा रहे हो' (चर्चा अंक 4369) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। 12:01 AM के बाद आपकी प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।
चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।
यदि हमारे द्वारा किए गए इस प्रयास से आपको कोई आपत्ति है तो कृपया संबंधित प्रस्तुति के अंक में अपनी टिप्पणी के ज़रिये या हमारे ब्लॉग पर प्रदर्शित संपर्क फ़ॉर्म के माध्यम से हमें सूचित कीजिएगा ताकि आपकी रचना का लिंक प्रस्तुति से विलोपित किया जा सके।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
#रवीन्द्र_सिंह_यादव
बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर मुक्तक।
जवाब देंहटाएं