जीवन के कवि सम्मेलन में, गाना तो मजबूरी है। आये हैं तो कुछ कह-सुनकर, जाना बहुत जरूरी है।। जाने कितने स्वप्न संजोए, जाने कितने रंग भरे। ख्वाब अधूरे, हुए न पूरे, ठाठ-बाट रह गये धरे। सरदी-गरमी, धूप-छाँव को, पाना तो मजबूरी है। आये हैं तो कुछ कह-सुनकर, जाना बहुत जरूरी है।। जितना आगे कदम बढ़ाया, मंजिल उतनी दूर हो गयीं। समरसता की कल्पनाएँ सब, थककर चकनाचूर हो गयीं। घिसी-पिटी सी रीत निभाना, जन-जन की मजबूरी है। आये हैं तो कुछ कह-सुनकर, जाना बहुत जरूरी है।। बचपन बीता, गयी जवानी, सूरज ढलने वाला है। चिर यौवन को लिए हुए, मन सबका ही मतवाला है। दरवाजों की दस्तक को, पढ़ पाना बहुत जरूरी है। आये हैं तो कुछ कह-सुनकर, जाना बहुत जरूरी है।। |
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रविवार, 27 मार्च 2022
गीत "मजबूरी है" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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सुन्दर सृजन।
जवाब देंहटाएंनमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (28 मार्च 2022 ) को 'नहीं रूकती है चेहरे पर सुबह की नरम धूप' (चर्चा अंक 4383) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। 12:30 AM के बाद आपकी प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।
चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।
यदि हमारे द्वारा किए गए इस प्रयास से आपको कोई आपत्ति है तो कृपया संबंधित प्रस्तुति के अंक में अपनी टिप्पणी के ज़रिये या हमारे ब्लॉग पर प्रदर्शित संपर्क फ़ॉर्म के माध्यम से हमें सूचित कीजिएगा ताकि आपकी रचना का लिंक प्रस्तुति से विलोपित किया जा सके।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
#रवीन्द्र_सिंह_यादव
बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंसरदी-गरमी, धूप-छाँव को, पाना तो मजबूरी है।
जवाब देंहटाएंआये हैं तो कुछ कह-सुनकर, जाना बहुत जरूरी है।।
बहुत सुन्दर आत्मीय गुरुदेव
हमेशा की तरह अनुपम लेखनी शुभकामनाओं सह ।
जवाब देंहटाएंबढ़िया सृजन आदरणीय
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर सार्थक भावों वाला लयबद्ध गीत।
जवाब देंहटाएंअप्रतिम।