भूमिका भावनाओं की
सम्वेदना “गुरुओं से सम्वाद”
“गुरुओं से सम्वाद” की रचयिता राधा
तिवारी "राधेगोपाल" एक गृहणी से साथ-साथ एक कवयित्री भी है, जो सम्वेदना की प्रतिमूर्ति और एक कामकाजी महिला है। जिसके रोम-रोम में
साहित्य निष्ठा कुट-कूटकर भरी हुई है। आमतौर पर देखने में आया है कि जो महिलाएँ
अपनी भावनाओं को मूर्त काव्य का रूप दे रही हैं उनमें से ज्यादातर विषय से भटक
जातीं हैं और अपने ब्लॉग पर अपनी रचना को लगाकर इतिश्री कर लेती हैं। किन्तु राधा
तिवारी ने इस मिथक को झुठलाते हुए, प्रतिकूल परिस्थितियों में भी साहित्यिक सृजन ही किया है। कवयित्री एक सम्वेदनशील महिला है और उसके मन में मैंने हमेशा कृतज्ञता का भाव देखा है। जिसका जीता जागता उदाहरण उनकी प्रकाशित होनेवाली दोहों की पुस्तक है "गुरुओं से सम्वाद"। "गुरुओं का सम्वाद" दोहा काव्य
संग्रह की पाण्डुलिपि को पढ़ते हुए मैंने यह अनुभव किया है कि सामाजिक सरोकारों
के विभिन्न पहलुओं पर कवयित्री का गहन चिन्तन पृथक-पृथक विषयों पर स्पष्टता के
साथ परिलक्षित हुआ है। कवयित्री राधा तिवारी के दोहे विभिन्नता के साथ
दोहाछन्दशास्त्र के नियमों पर भी खरे उतरते हैं। आज के दूषित परिवेश को कविता
में समेटना एक चुनौतीभरा कार्य है जिसे कवयित्री ने निष्पक्ष रहते हुए अपने
आस-पास विखरे हुए विषयों के साथ अपनी अभिव्यक्ति का आधार बनाया है। दोहा संग्रह का नाम है "गुरुओं का
सम्वाद" है जिसके अनुरूप ही संकलन का प्रारम्भ करते हुए कवयित्री कुछ इस
प्रकार रचा है- "गुरुदेव
तुमको करूँ, नमन
हजारों बार। तुमने सारे कर दिए, स्वप्न
मेरे साकार।। -- करती दिल से प्रार्थना, राधा
कर को जोड़। गुरुवर मेरे साथ को, कभी
ना देना छोड़।। -- गुरुवर का आशीष तो, होता
है अनमोल। ईश्वर की वाणी समझ, शिक्षक
के हर बोल।। -- चेलों के देता सदा, ज्ञान
चक्षु को खोल। सतगुरु की बातें बहुत, होती है अनमोल।।" प्रणिमात्र
को दुनिया में लाने वाली माँ ही होती है। जिसकी महिमा को बखान करते हुए कवयित्री
लिखती है- "लिखने का माँ ने दिया, राधे
को आशीष। माँ के चरणों में सदा, झुका
दीजिए शीश।। -- आड़ी-तिरछी हो भले, चाहे
वह हो गोल। रोटी माँ के हाथ की, होती
है अनमोल।।" समय की महत्ता को बताते
हुए कवयित्री ने सचेत करते हुए कहा है- "समय
बड़ा अनमोल है, रखो
समय का ध्यान। साथ समय के तुम चलो, करना
मत अभिमान।।"
प्यार के ढाई अक्षरों के मूल्य को कवयित्री ने अपने दोहे में कुछ इस
प्रकार बाँधा है- "हिंदू ने फेरे लिए, मुस्लिम
कहे कबूल। प्यार बिना होती यहाँ, बातें
सभी फिजूल।।"
गुरुओं के सम्वाद की रचयिता राधा तिवारी "राधेगोपाल" का जन्म जिस
राजस्थान में हुआ था। जिसके प्रति कृतज्ञता प्रकट करते हुए अपने दोहे में
कवयित्री लिखती हैं- "राधे की पहचान है, प्यारा
राजस्थान। वीर जन्मते हैं जहाँ, करने
को बलिदान।।"
सम्बन्धों को लेकर भी दोहाकारा सजग रही है और कहती है- "नहीं टूटने चाहिए, आपस
के संबंध। सच्चाई से कीजिए, जीवन
में अनुबंध।।"
जिस देश में हमने जन्म लिया है उसके प्रति अनुरक्त होकर कवयित्री ने लिखा
है- "साफ-स्वच्छ होगा अगर, अपना
भारत देश। निर्मल होगा हर तरफ़, अपना
यह परिवेश।। -- आपस के सौहार्द्र का, है
यह मेरा देश। समरसता ही देश के, होते
हैं गणवेश।।"
भाषा को लेकर भी इस संकलन में कुछ दोहे कवयित्री ने संजोये हैं- "भाषा का होता सदा, अपना
एक महत्व। अच्छी भाषा है वही, जिसमें
होते तत्व।।"
गाँव की डगर कितनी दुष्कर होती है, देखिए उसके बारे में इस संकलन का
निम्न दोहा- "टेढा मेढा रास्ता, जाए
कैसे गांव। राह कँटीली है सभी, फट
जाते हैं पाँव।।"
बेटियों को लेकर भी कवयित्री सचेत रही है और लिखती है- "बेटी को मत समझना, जीवन
में अब भार। दोनों कुल की है सुता, एक
सफल आधार।।"
यद्यपि क्रोध पर ज्ञानी-ध्यानी और विद्वान भी निजय नहीं पा सके हैं। ऐसे
में कवयित्री का निम्न दोहा समीचीन है- "गुस्सा करने से सदा, रिश्ते
होते तार। दो नावों में बैठकर, कैसे
होंगे पार।।"
जनजीवन से जुड़े लगभग सभी विषयों को दोहों का समावेश दोहा संग्रह
"गुरुओं का सम्वाद" में किया गया है। मेरे अनुसार
इस दोहा संग्रह के 10 उत्कृष्ट दोहे निम्नवत् है- 1- अगर
चाहते सुख यहाँ, रहना
सदा प्रसन्न। मन वैसा हो जाएगा, जैसा खाया अन्न।। 2- धान
खेत के माँगते, बादल
से जब नीर। वर्षा से खुलती सदा, धरती की तकदीर।। 3- पिंजरे
में चिड़िया पड़ी, देख
रही आकाश। काट दिए हैं पंख सब, मनवा हुआ उदास।। 4- सादापन
सबसे बड़ा, होता
है श्रृंगार। विनम्रता का कीजिए, सब से ही व्यवहार।। 5- बीड़ी
सिगरेट का कभी, करना
मत उपयोग। तंबाकू के पान से, लग जाता है रोग।। 6- चाहो
गर शीतल हवा, नहीं
काटना वृक्ष। पेड़ो के बिन धरा का, नंगा रहता वक्ष।। 7- बूंद
बूंद से घट भरे, कहते
ज्ञानी संत। जल बिन जीवन का सदा, हो जाता है अंत।।" 8- धन
दौलत को, मत
करना अभिमान। दुख जो सबका बाँट लें, होता वही महान। 9- बदल
गया कितना यहाँ, दुनिया
का व्यवहार। आँगन में अब हो गई, खड़ी एक दीवार।। 10-पढ़े-लिखों के हाथ में, अगर
रहेगी डोर। देश तभी बढ़ पायगा, नित
विकास की ओर।। छन्दबद्ध
काव्य के सौष्ठव का अपना अनूठा ही स्थान होता है जिसका निर्वहन कवयित्री ने "गुरुओं
के सम्वाद" में कुशलता के साथ किया है- राधा तिवारी "राधेगोपाल" ने अपने दोहा संग्रह “गुरुओं के सम्वाद” में यह सिद्ध कर दिया है कि वह न केवल एक कवयित्री है बल्कि शब्दों की कुशल चितेरी भी हैं। “गुरुओं का सम्वाद” दोहा संकलन में कवयित्री
ने छंदो के साथ-साथ भावों को भी प्रमुखता दी है और सोद्देश्य लेखन के भाव को
अपनी रचनाओं में हमेशा जिन्दा रखा है। “गुरुओं का सम्वाद” दोहा संग्रह को पढ़कर मैंने
अनुभव किया है कि कवयित्री रादा तिवारी "राधेगोपाल" ने शब्द सौन्दर्य
के अतिरिक्त दोहे की सभी विशेषताओं का संग-साथ लेकर जो निर्वहन किया है वह
अत्यन्त सराहनीय है। मुझे प्रसन्नता है कि मेरी शिष्या राधा
तिवारी का दोहासंकलन “गुरुओं
का सम्वाद” प्रकाशन की कतार में है। विश्वास है कि इस दोहासंग्रह को पढ़कर पाठक लाभान्वित तो होंगे
ही अपितु उन्हें काव्य की मानसिक खुराक भी मिलेगी। आशा करता हूँ कि यह कृति
समीक्षकों की दृष्टि से भी उपादेय सिद्ध होगी। “गुरुओं का सम्वाद” के लिए मैं हृदय से अपनी अशेष शुभकानाएँ प्रेषित करता हूँ और कवयित्री के पति श्री गोपालदत्त तिवारी जी को भी बधाई देता हूँ। (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’) कवि एवं साहित्यकार टनकपुर-रोड, खटीमा जिला-ऊधमसिंहनगर (उत्तराखण्ड)
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सोमवार, 21 मार्च 2022
भूमिका “गुरुओं से सम्वाद-भावनाओं की सम्वेदना” ( साहित्यकार/समीक्षक डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
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सुंदर समीक्षा, बहुत बहुत बधाई!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर समीक्षा !
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