-- कल केवल कुहरा आया था, अब बादल भी छाया है। हाय भयानक इस सर्दी ने, सबका हाड़ कँपाया है।। भीनी-भीनी पड़ी फुहारें, झीना-झीना उजियारा। आग सेंकता सरजू दादा, दिन में छाया अँधियारा। कॉफी और चाय का प्याला, सबसे ज्यादा भाया है। हाय भयानक इस सर्दी ने, सबका हाड़ कँपाया है।। -- आलू और शकरकन्दी भी, सबके मन को भाते हैं। गर्म-गर्म गाजर का हलवा, खुश होकर सब खाते हैं। कम्बल-लोई और कोट से, कोमल बदन छिपाया है। हाय भयानक इस सर्दी ने, सबका हाड़ कँपाया है।। -- हीटर-गीजर और अँगीठी, गज़क, रेवड़ी-मूँगफली। गर्म समोसे, टिक्की-डोसा, अच्छी लगती हैं इडली। मौसम के अनुकूल बया ने, अपना नीड़ बनाया है। हाय भयानक इस सर्दी ने, सबका हाड़ कँपाया है।। -- |
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गुरुवार, 5 जनवरी 2023
प्रकाशन "बालगीत-सबका हाड़ कँपाया है" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
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