-- प्रीत-रीत का जब कभी, होता है अहसास। मन की बंजर भूमि पर, तब उग आती घास।१। -- कुंकुम बिन्दी-मेंहदी, काले-काले बाल। कनक-छरी सी कामिनी, लगती बहुत कमाल।२। -- मौसम आवारा हुआ, मुखरित है शृंगार। नेह-नीर का पान कर, सुमन बाँटते प्यार।३। -- लगे चहकने बाग में, पत्ते कलियाँ-फूल। जंगल में हँसने लगे, बेरी और बबूल।४। -- कंकड़-काँटों से भरी, प्यार प्रीत की राह। पूरी हों इस जनम में, कैसे मन की चाह।५। -- आशिकबाजी की नहीं, होती कोई जात। बेमतलब की हो रही, माशूकों से बात।६। -- मिल जाती हैं आँख जब, तब आ जाता चैन। गैरों को अपना करें, चंचल चितवन नैन।७। -- मोती जैसी सुमन से, टपक रही है ओस। सौरभ और पराग-कण, कलियाँ रहीं परोस।८। -- भिन्न-भिन्न मधुभ्रामरीं, मचा रहीं हैं शोर। सूर्य-रश्मियाँ दे रहीं, सारे जग को भोर।९। -- प्रणय निवेदन से हुए, गाल सिँदूरी-लाल। हँसी-ठिठोली कर रहे, राधा सँग गोपाल।१०। -- नख-शिख को मत देखिए, होगा हिया अशान्त। भोगवाद को त्याग कर, रखिए मन को शान्त।११। -- लटक रहे हैं कब्र में, जिनके आधे पाँव। वो ही ज्यादा फेंकते, इश्क-मुश्क के दाँव।१२। -- मन में तो है कलुषता, होठों पर हरि नाम। काम-काम को छल रहा, अब तो आठों याम।१३। -- कामुकता से हो रहा, लज्जित आज समाज। महिलाओं की देश में, नहीं सुरक्षित लाज।१४। -- यौवन तो उन्मुक्त है, कामुकता का केन्द्र। सुन्दरता की मार से, पागल हुए सुरेन्द्र।१५। -- नख से शिख तक रूप की, महिमा बड़ी अनन्त। देख सामने रूपसी, हारे सन्त महन्त।१६। -- कामदेव के ताप का, जब उठता तूफान। चक्रवात के जाल में, फँस जाता इंसान।१७। -- उठती है जब रूप के, मादकता की गन्ध। अनजाने के साथ में, हो जाते अनुबन्ध।१८। -- दुनिया में सबसे पेरबल, काम वेग का ज्वार। नहीं बनी कोई दवा, जिससे हो उपचार।१९। -- झूमर झूलें कान में, पायल करतीं शोर। छम-छम करती कामिनी, आँगन में चहुँ ओर।२०। -- मंगलसूत्र सुहाग का, विहँसे बाजूबन्द। सजनी के शृंगार को, साजन करें पसन्द।२१। -- नथुली झूमे नाक में, चूड़ी-कंगन हाथ। सुन्दर लगती भामिनी, आभूषण के साथ।२२। -- गोरा रँग-काले बसन, चप्पल हैं चित-चोर। गहने सोने-रजत के, मन को करें विभोर।२३। -- टीका में हीरा जड़ा, माथे पर सिन्दूर। मानों उतरी धरा पर, स्वर्ग-लोक से हूर।२४। -- सेमल-टेसू लाल हैं, चहक रहा मधुमास। भँवरे-मधु की माधवी, करते भोग-विलास।२५। -- गेहूँ करते नृत्य हैं, आम रहे बौराय। जामुन नीम-पलाश भी, आपस में बतियाय।२६। -000- |
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शनिवार, 21 जनवरी 2023
छब्बीस दोहे "मुखरित है शृंगार" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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