-- हर रोज रंग अपना, मौसम बदल रहा है। घर-द्वार तो वही है, आँगन बदल रहा है।। -- सूरज नियम से उगता, चन्दा नियम से आता। कल-कल निनाद करता, झरना ग़ज़ल सुनाता। पतझड़ के बाद अपना, उपवन बदल रहा है। घर-द्वार तो वही है, आँगन बदल रहा है।। -- उड़ उड़के आ रहे हैं, पंछी खुले गगन में। परदेशियों ने डेरा, डाला हुआ चमन में। आसन वही पुराना, शासन बदल रहा है। घर-द्वार तो वही है, आँगन बदल रहा है।। -- महफिल में आ गये हैं, नर्तक नये-नवेले। बेजान हैं तराने, शब्दों के हैं झमेले। हैरत में है ज़माना, दामन बदल रहा है। घर-द्वार तो वही है, आँगन बदल रहा है।। -- |
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मंगलवार, 24 जनवरी 2023
"आँगन बदल रहा है" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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