-- उस पर
मैं कलम चलाऊँगा। दुर्गम-पथरीले
पथ पर मैं, आगे को
बढ़ता जाऊँगा।। -- मैं
कभी वक्र होकर घूमूँ, हो
जाऊँ सरल-सपाट कहीं। मैं
स्वतन्त्र हूँ, मैं
स्वछन्द हूँ, मैं
कोई चारण भाट नहीं। कहने
से मैं नहीं लिखूँगा, गीत न
जबरन गाऊँगा। दुर्गम-पथरीले
पथ पर मैं, आगे को
बढ़ता जाऊँगा।। -- भावों
की अविरल धारा में, मैं
डुबकी खूब लगाऊँगा। शब्दों
की पतवार थाम, मैं
नौका पार लगाऊँगा। घूम-घूम
कर सत्य-अहिंसा की मैं
अलख जगाऊँगा। दुर्गम-पथरीले
पथ पर मैं, आगे
बढ़ता जाऊँगा।। -- चाहे
काँटों की शय्या हो, या
नर्म-नर्म हो सेज सजे। सारंगी
का गुंजन सुनकर, चाहे
ढोलक-मृदंग बजे। अत्याचारी
के दमन हेतु, शिव का
डमरू बन जाऊँगा। दुर्गम-पथरीले
पथ पर मैं, आगे
बढ़ता जाऊँगा।। -- |
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रविवार, 19 फ़रवरी 2023
गीत "सत्य-अहिंसा की मैं अलख जगाऊँगा" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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