अपने शब्दों में
धार भरो।
सोई चेतना जगाने को,
जनमानस में हुंकार
भरो।।
अनुबन्धों में भी
मक्कारी,
सम्बन्ध बन गये
व्यापारी।
जननायक करते
गद्दारी,
लाचारी में दुनिया
सारी।
अब नहीं समय शीतलता
का,
मलयानिल में अंगार
भरो।
सोई चेतना जगाने को,
जनमानस में हुंकार
भरो।।
है उपासना वासनायुक्त,
करना इसको
वासनामुक्त।
कायरता का है
उदयकाल,
हो गयी वीरता आज
लुप्त।
अब पैन बाण सा पैना
कर,
गांडीव उठा टंकार
करो।
सोई चेतना जगाने को,
जनमानस में हुंकार
भरो।।
मत उत्तेजक शृंगार
करो,
मिश्री जैसा मत
प्यार करो।
छन्दों की सबल
इमारत में,
मानवता का आधार
धरो।
निज “रूप” पुरातन
पहचानो,
फिर से वीणा झंकार
करो।
सोई चेतना जगाने को,
जनमानस में हुंकार
भरो।।
|
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गुरुवार, 10 अप्रैल 2014
"गीत-फिर से वीणा झंकार करो" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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बहुत खूब बहुत ही लाज़वाब अभिव्यक्ति आपकी
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना ।
जवाब देंहटाएंबहुत खूब , आभार आपका !
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया रचना...
जवाब देंहटाएंसादर
अनु
बहुत सुन्दर गीत
जवाब देंहटाएंनिज “रूप” पुरातन पहचानो,
जवाब देंहटाएंफिर से वीणा झंकार करो।
सोई चेतना जगाने को,
जनमानस में हुंकार भरो...बहुत सुंदर गीत
कुछ नया करने का सशक्त आवाहन करती है यह रचना :
जवाब देंहटाएंअनुबन्धों में भी मक्कारी,
सम्बन्ध बन गये व्यापारी।
जननायक करते गद्दारी,
लाचारी में दुनिया सारी।
अब नहीं समय शीतलता का,
मलयानिल में अंगार भरो।
सोई चेतना जगाने को,
जनमानस में हुंकार भरो।।
कल 12/04/2014 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
जवाब देंहटाएंधन्यवाद !
बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रेरक प्रस्तुति ,....आभार
जवाब देंहटाएंबढ़िया सुंदर रचना व प्रस्तुति , आ. शास्त्री जी को धन्यवाद !
जवाब देंहटाएंनवीन प्रकाशन -: बुद्धिवर्धक कहानियाँ - ( ~ अनमोल रत्न है यहशरीर ~ ) - { Inspiring stories part - 5 }