नेह अगर होगा खुश होकर दीपक जलते जाएँगे।
धरती पर फैला सारा अँधियारा हरते जाएँगे।।
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सुमन-सुमन से मिलकर, जब घर-आँगन में मुस्काएँगे,
सूनी-वीरानी बगिया में, फिर से गुल खिल जाएँगे,
फड़-फड़ करती तितली, भँवरे गुंजन करते आयेंगे।
धरती पर फैला सारा अँधियारा हरते जाएँगे।।
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देवताओं का वन्दन होगा, धूप सुगन्धित सुलगेगी,
जननी-जन्मभूमि का हम आराधन करते जाएँगे।
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महफिल में शम्मा होगी तो, सुर की धारा निकलेगी,
विरह सुखद संयोग बनेगा, जमी पीर सब पिघलेगी.
उर के सारे जख़्म पुराने, प्रतिपल भरते जाएँगे।
धरती पर फैला सारा अँधियारा हरते जाएँगे।।
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आशा जगाती कविता बहुत सुंदर ।
जवाब देंहटाएंबहुत खूब ...
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 17-04-2014 को चर्चा मंच पर दिया गया है
जवाब देंहटाएंआभार
बहुत सुंदर कविता...
जवाब देंहटाएंसुंदर कविता, उम्मीद जगाती।
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