रतन की खोज में हमने, खँगाला था समन्दर को
इरादों की बुलन्दी से, बदल डाला मुकद्दर को
लगी दिल में लगन हो तो, बहुत आसान है मंजिल
हमेशा जंग में लड़कर, फतह मिलती सिकन्दर को
अगर मर्दानगी के साथ में, जिन्दादिली भी हो
जहां में प्यार का ज़ज़्बा, बनाता मोम पत्थर को
नहीं ताकत थी गैरों में, वतन का सिर झुकाने की
हमारे देश का रहबर, लगाता दाग़ खद्दर को
हमारे “रूप” पर आशिक हुए दुनिया के सब गीदड़
सभी मकड़ी के जालों में फँसाते शेर बब्बर को
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बहुत बढ़िया रचना..
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत रचना :)
जवाब देंहटाएंजबरदस्त...
जवाब देंहटाएंजहां में प्यार का ज़ज़्बा, बनाता मोम पत्थर को..
जवाब देंहटाएंbahut pasand aaee ye pankti...
बहुत सुन्दर ग़ज़ल वाह दिली दाद कबूलें
जवाब देंहटाएंwaah kya bat kahi .....
जवाब देंहटाएंआप की अच्छी ग़ज़ल पसन्द आई । मेरी बधाई ।
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