जल में-थल में,
नीलगगन में,
जो कर देता है
उजियारा।
सबकी आँखों को भाता है,
रूप तुम्हारा प्यारा-प्यारा।।
कलियाँ चहक रही
उपवन में,
गलिया महक रही
मधुबन में,
कल-कल, छल-छल करती
धारा।
सबकी आँखों को भाता है,
रूप तुम्हारा
प्यारा-प्यारा।।
पंछी कलरव गान
सुनाते,
मेढक टर्र-टर्र
टर्राते,
खिला कमल, बनकर
अंगारा।
सबकी आँखों को भाता है,
रूप तुम्हारा
प्यारा-प्यारा।।
सूरज जन-जीवन को
ढोता,
चन्दा शीतल-शीतल
होता,
दोनो हरते हैं
अंधियारा।
सबकी आँखों को भाता है,
रूप तुम्हारा
प्यारा-प्यारा।।
कोई भूले अपने पथ
को,
रौशन करते सदा जगत
को,
तुमने सबका काज
सँवारा।
सबकी आँखों को भाता है,
रूप तुम्हारा
प्यारा-प्यारा।।
|
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गुरुवार, 3 अप्रैल 2014
"गीत-तुमने सबका काज सँवारा" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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बहुत सुंदर रचना.
जवाब देंहटाएंवाह बहुत सुन्दर प्रेममयी लाज़वाब गीत आदरणीय
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
बहुत सुंदर रचना.
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर !
जवाब देंहटाएंबहुत ही प्यारी रचना।
जवाब देंहटाएं