पथ पर आगे बढ़ते-बढ़ते, पाषाणों से प्यार हो गया
जीवन का दुख-दर्द हमारे, जीने का आधार हो गया
पत्थर का सम्मान करो तो, देवदिव्य वो बन जायेगा
पर्वतमालाओं में उपजा, धरती का अवतार हो गया
प्राण बिना तन होता सबका, केवल माटी का पुतला है
जीव आत्मा के आने से, श्वाँसों का संचार हो गया
गुलशन में जब माली आया, फूल खिले-कलियाँ मुस्कायी
दिवस-मास मधुमास बन गया, उपवन का शृंगार हो गया
सुख का सूरज उगा गगन में, चारों ओर उजाला पसरा
बादल ने अमृत बरसाया, मनभावन त्यौहार हो गया
बगिया फिर से हैं बौरायी, कोयलिया ने राग सुनाया
आँखों ने देखा जो सपना, वो फिर से साकार हो गया
कुदरत का है “रूप” निराला, कोई गोरा कोई काला
पारस की पतवार मिली तो, भवसागर से पार हो गया
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सोमवार, 28 अप्रैल 2014
"पाषाणों से प्यार हो गया" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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पत्थर का सम्मान करो तो, देवदिव्य वो बन जायेगा
जवाब देंहटाएंपर्वतमालाओं में उपजा, धरती का अवतार हो गया..
नमस्कार शास्त्रीजी ... सहमत आपकी बात से पत्थर का सामान करो तो देवता नज़र आता है ...
लाजवाब शेर हैं सभी ....
बहुत ही बढ़िया सर!
जवाब देंहटाएंसादर
वाह बहुत खूब
जवाब देंहटाएंलिखते लिखते अब कलम से प्यार हो ही गया
वाह !
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