पथ उनको क्या
भटकायेगा, जो अपनी खुद राह बनाते
भूले-भटके
राही को वो, उसकी मंजिल तक पहुँचाते
अल्फाज़ों
के चतुर चितेरे, धीर-वीर-गम्भीर सुख़नवर
जहाँ न
पहुँचें सूरज-चन्दा, वो उस मंजर तक हो आते
अमर नहीं
है काया-माया, लेकिन शब्द अमर होते हैं
शब्द धरोहर
हैं समाज की, दिशाहीन को दिशा दिखाते
विरह-व्यथा
की भट्टी में, जब तपकर शब्द निकलते हैं
पाषाणों के
भीतर जाकर, वो सीधे दिल को छू जाते
चाहे
ग़ज़ल-गीत हो, या फिर दोहा या रूबाई हो
वजन बराबर
हो तो, अपना असर बराबर दिखलाते
असली “रूप”
दिखाता दर्पण, जो औकात बताता सबको
जो काँटों
में पले-बढ़े हैं, वो ही तो गुलशन महकाते
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बहुत सुंदर रचना !
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर..
जवाब देंहटाएंअमर नहीं है काया-माया, लेकिन शब्द अमर होते हैं
जवाब देंहटाएंशब्द धरोहर हैं समाज की, दिशाहीन को दिशा दिखाते
bahut khoob .badhai