तपती
गर्म दुपहरी में,
जो राहत
सी दे जाते हैं।
पीताम्बर को
धारण कर,
जीवन
दर्शन सिखलाते हैं।।
जब
सूरज आग उगलता है,
लू
ने जब तन को झुलसाया।
सड़क
किनारे खड़े तपस्वी,
देते
फूलों की छाया।
अमलतास
के पीले झूमर,
मन
को बहुत लुभाते हैं।
पीताम्बर को
धारण कर,
जीवन
दर्शन सिखलाते हैं।।
किसके
लिए बताओ तुमने
सज-धज
कर सिंगार किया।
तुमको
कंचन के गजरों का,
किसने
ये उपहार दिया।
जनसेवा
के अनुभाव तुम्हारे,
मन
में कैसे आते हैं?
पीताम्बर को
धारण कर,
जीवन
दर्शन सिखलाते हैं।।
रामायण
के नायक जैसे,
कर्तव्यों
के स्वामी हो।
स्वार्थपरायण
जग में तुम,
निस्वार्थ
और निष्कामी हो।
आगत
का स्वागत करने में,
फूले नहीं समाते हैं।
पीताम्बर को
धारण कर,
जीवन
दर्शन सिखलाते हैं।।
|
"उच्चारण" 1996 से समाचारपत्र पंजीयक, भारत सरकार नई-दिल्ली द्वारा पंजीकृत है। यहाँ प्रकाशित किसी भी सामग्री को ब्लॉग स्वामी की अनुमति के बिना किसी भी रूप में प्रयोग करना© कॉपीराइट एक्ट का उलंघन माना जायेगा। मित्रों! आपको जानकर हर्ष होगा कि आप सभी काव्यमनीषियों के लिए छन्दविधा को सीखने और सिखाने के लिए हमने सृजन मंच ऑनलाइन का एक छोटा सा प्रयास किया है। कृपया इस मंच में योगदान करने के लिएRoopchandrashastri@gmail.com पर मेल भेज कर कृतार्थ करें। रूप में आमन्त्रित कर दिया जायेगा। सादर...! और हाँ..एक खुशखबरी और है...आप सबके लिए “आपका ब्लॉग” तैयार है। यहाँ आप अपनी किसी भी विधा की कृति (जैसे- अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कर सकते हैं। बस आपको मुझे मेरे ई-मेल roopchandrashastri@gmail.com पर एक मेल करना होगा। मैं आपको “आपका ब्लॉग” पर लेखक के रूप में आमन्त्रित कर दूँगा। आप मेल स्वीकार कीजिए और अपनी अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कीजिए। |
Linkbar
फ़ॉलोअर
शुक्रवार, 13 जून 2014
"आगत का स्वागत करने में, फूले नहीं समाते हैं" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
-
नये साल की नयी सुबह में, कोयल आयी है घर में। कुहू-कुहू गाने वालों के, चीत्कार पसरा सुर में।। निर्लज-हठी, कुटिल-कौओं ने,...
-
कुहरे ने सूरज ढका , थर-थर काँपे देह। पर्वत पर हिमपात है , मैदानों पर मेह।१। -- कल तक छोटे वस्त्र थे , फैशन की थी होड़। लेक...
-
सपना जो पूरा हुआ! सपने तो व्यक्ति जीवनभर देखता है, कभी खुली आँखों से तो कभी बन्द आँखों से। साहित्य का विद्यार्थी होने के नाते...
पीताम्बरी अमलतास का सजीव चित्रण बहुत सुन्दर दृश्य |
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना व प्रस्तुति , आ. धन्यवाद !
जवाब देंहटाएंरस पूर्ण ...पूरा न्याय |
जवाब देंहटाएंबेहतरीन प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसुंदर कविता
जवाब देंहटाएंआदरणीय शास्त्री जी .. इन पेड़ों पौधों को इतना मान दे प्रकृति को अमरत्व दे दिया आप ने
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
भ्रमर ५
सुन्दर रचना...
जवाब देंहटाएं