![]() सबको अच्छे दिनों का, खूब दिखाया स्वप्न। तीस दिनों में कर दिया, सबको बहुत विपन्न।१। -- देखे जितने ख्वाब थे, सभी हो गये भंग। सब कुछ मँहगा हो गया, बिगड़ा जीवन ढंग।२। -- शासन का रुख देख कर, मन में हुआ मलाल। इस शासन ने कर दिया, जनजीवन बदहाल।३। -- नयी पौध को रोपकर, काटा चन्दन वृक्ष। निर्धन-निर्बल का यहाँ, कौन सुनेगा पक्ष।४। -- हर-हर, घर-घर आ गया, आया नहीं सुराज। जिससे खुशहाली बढ़े, नहीं मिला वो राज।५। -- कुटिल सुनामी आयी थी, बहा ले गयी चैन। सुख के दिवस चले गये, आयी काली रैन।६। -- गंगा निर्मल हो भले, बहे भले जल-धार। मँहगाई को देखकर, आहत है परिवार।७। |
"उच्चारण" 1996 से समाचारपत्र पंजीयक, भारत सरकार नई-दिल्ली द्वारा पंजीकृत है। यहाँ प्रकाशित किसी भी सामग्री को ब्लॉग स्वामी की अनुमति के बिना किसी भी रूप में प्रयोग करना© कॉपीराइट एक्ट का उलंघन माना जायेगा। मित्रों! आपको जानकर हर्ष होगा कि आप सभी काव्यमनीषियों के लिए छन्दविधा को सीखने और सिखाने के लिए हमने सृजन मंच ऑनलाइन का एक छोटा सा प्रयास किया है। कृपया इस मंच में योगदान करने के लिएRoopchandrashastri@gmail.com पर मेल भेज कर कृतार्थ करें। रूप में आमन्त्रित कर दिया जायेगा। सादर...! और हाँ..एक खुशखबरी और है...आप सबके लिए “आपका ब्लॉग” तैयार है। यहाँ आप अपनी किसी भी विधा की कृति (जैसे- अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कर सकते हैं। बस आपको मुझे मेरे ई-मेल roopchandrashastri@gmail.com पर एक मेल करना होगा। मैं आपको “आपका ब्लॉग” पर लेखक के रूप में आमन्त्रित कर दूँगा। आप मेल स्वीकार कीजिए और अपनी अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कीजिए। |
Linkbar
फ़ॉलोअर
शनिवार, 28 जून 2014
"दोहे-आया नहीं सुराज" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
-
नये साल की नयी सुबह में, कोयल आयी है घर में। कुहू-कुहू गाने वालों के, चीत्कार पसरा सुर में।। निर्लज-हठी, कुटिल-कौओं ने,...
-
कुहरे ने सूरज ढका , थर-थर काँपे देह। पर्वत पर हिमपात है , मैदानों पर मेह।१। -- कल तक छोटे वस्त्र थे , फैशन की थी होड़। लेक...
-
सपना जो पूरा हुआ! सपने तो व्यक्ति जीवनभर देखता है, कभी खुली आँखों से तो कभी बन्द आँखों से। साहित्य का विद्यार्थी होने के नाते...
वाह बहुत खूब :)
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति-
जवाब देंहटाएंआभार आदरणीय-
वाह-वाह...क्या बात है...
जवाब देंहटाएंअब पछताए होत का जब चिड़िया चुग गई खेत।
जवाब देंहटाएंअच्छे दिन आएंगे यह बात उन्होंने अपने लिए कहे थे जनता के लिए सोचने का वक़्त किसके पास है
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया
बढ़िया रचना व लेखन , आदरणीय धन्यवाद !
जवाब देंहटाएंब्लॉग जगत में एक नए पोस्ट्स न्यूज़ ब्लॉग की शुरुवात हुई है , जिसमें आज आपकी ये पोस्ट चुनी गई है आपकी इस रचना का लिंक I.A.S.I.H पोस्ट्स न्यूज़ पर है , कृपया पधारें धन्यवाद !
बहुत सुन्दर और सटीक भाव लिए दोहे !
जवाब देंहटाएंउम्मीदों की डोली !
सारगर्भित और सार्थक दोहे
जवाब देंहटाएं