प्रस्तुत है-
यह मुक्तक-बाल कविता!
इसको अपना मधुर स्वर दिया है-
अर्चना चावजी ने!
मानसून का मौसम आया,
तन से बहे पसीना!
भरी हुई है उमस हवा में,
जिसने सुख है छीना!!
कुल्फी बहुत सुहाती हमको,
भाती है ठण्डाई!
दूध गरम ना अच्छा लगता,
शीतल सुखद मलाई!!
पंखा झलकर हाथ थके जब,
हमने झूला झूला!
ठण्डी-ठण्डी हवा लगी तब,
मन खुशियों से फूला!!
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मंगलवार, 17 जून 2014
"मन खुशियों से फूला" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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सपना जो पूरा हुआ! सपने तो व्यक्ति जीवनभर देखता है, कभी खुली आँखों से तो कभी बन्द आँखों से। साहित्य का विद्यार्थी होने के नाते...
आपकी इस सुंदर रचना का उल्लेख अपने फेसबुक पन्ने पर किया है -
जवाब देंहटाएंमैं हिंदी भाषी हूं
सूचनार्थ
बहुत सुन्दर...
जवाब देंहटाएंप्यारी सी रचना...
सादर
अनु
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया।
बहुत प्यारा बाल गीत...
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंरचना पढ़ते हुए बचपन की यादें ताज़ा हो गई
जवाब देंहटाएंबहुत खूब...
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर प्रस्तुति.....बचपन को छूना हमेशा आरामदायक और यादों का स्रोत होता है.....|
जवाब देंहटाएंसादर
आपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति बुधवारीय चर्चा मंच पर ।।
जवाब देंहटाएंबहुत हीं मधुर ज़ी |
जवाब देंहटाएंबढ़िया बाल गीत-
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें आदरणीय-
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना :
जवाब देंहटाएंमनभावन बंदिश :
मानसून का मौसम आया,
तन से बहे पसीना!
भरी हुई है उमस हवा में,
जिसने सुख है छीना!!
कुल्फी बहुत सुहाती हमको,
भाती है ठण्डाई!
दूध गरम ना अच्छा लगता,
शीतल सुखद मलाई!!
पंखा झलकर हाथ थके जब,
हमने झूला झूला!
ठण्डी-ठण्डी हवा लगी तब,
मन खुशियों से फूला!!