हर सिक्के के दो पहलू हैं, उलट-पलटकर देख ज़रा।
बिन परखे क्या पता चलेगा, किसमें कितना खोट भरा।।
हर पत्थर हीरा बन जाता, जब किस्मत नायाब हो,
मोती-माणिक पत्थर लगता, उतर गई जब आब हो,
इम्तिहान में पास हुआ वो, तपकर जिसका तन निखरा।
बिन परखे क्या पता चलेगा, किसमें कितना खोट भरा।।
नंगे हैं अपने हमाम में, नागर हों या बनचारी,
कपड़े ढकते ऐब सभी के, चाहे नर हों या नारी,
पोल-ढोल की खुल जाती तो, आता साफ नज़र चेहरा।
बिन परखे क्या पता चलेगा, किसमें कितना खोट भरा।।
गर्मी की ऋतु में सूखी थी, पेड़ों-पौधों की डाली,
बारिश के मौसम में, छा जाती झाड़ी में हरियाली,
पानी भरा हुआ गड्ढा भी, लगता सागर सा गहरा।
बिन परखे क्या पता चलेगा, किसमें कितना खोट भरा।।
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बुधवार, 18 जून 2014
"बिन परखे क्या पता चलेगा" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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बहुत गंभीर बात कही है रचना में ,बिना परखे कोई भी भरोसा करना खुद को छलना है ,बहुत शानदार अभिव्यक्ति ,बहुत- बहुत बधाई आ० शास्त्री जी
जवाब देंहटाएंपरखना मत परखने से कोई रिश्ता नहीं रहता...
जवाब देंहटाएंरखना है धीरज हमें, देना है कुछ वक्त |
जवाब देंहटाएंशासक सारे एक से, करें फैसले शख्त |
करें फैसले शख्त, फैसले लोक लुभावन |
है असमंजस आज, सामने झंझट बावन |
रविकर यूँ मत सोच, दर्द से जूझे टखना |
बड़ी चुनौती आज, एक सरकार परखना ||
रविकर यूँ मत सोच, हमें अच्छे दिन चखना ||
हटाएंआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 19-06-2014 को चर्चा मंच पर चर्चा - 1648 में दिया गया है |
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर बात कही है :
जवाब देंहटाएंनंगे हैं अपने हमाम में, नागर हों या बनचारी,
कपड़े ढकते ऐब सभी के, चाहे नर हों या नारी,
पोल-ढोल की खुल जाती तो, आता साफ नज़र चेहरा।
बिन परखे क्या पता चलेगा, किसमें कितना खोट भरा।।
बिन परखे क्या पता चलेगा ......शानदार
जवाब देंहटाएंबहुत खूब |
जवाब देंहटाएंबिलकुल सही अभी व्यक्ति !
जवाब देंहटाएंनौ रसों की जिंदगी !
परखना तो जरूरी है ही ...
जवाब देंहटाएंलाजवाब रचना ...
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएं