जल गये ख़तूत, पर तहरीर बच गयी
लुट गये असबाब, पर जागीर बच गयी
झेलें हैं बहुत
हादसे, जीवन की जंग में
तदवीर काम आ गयी,
तकदीर बच गयी
गैरों की दासताँ से
तो, आजाद हो गये
बाँधी हुई अपनों की
तो, जंजीर बच गयी
हम खा रहे हैं शौक से. भाषण के निवाले
महफिल में सिर्फ झूठ
की, तकरीर बच गयी
पेड़ों की कोपलों
पे, बुढ़ापा सा आ गया
लेकिन हमारे “रूप”
की, तस्वीर बच गयी
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बुधवार, 1 अक्तूबर 2014
"ग़ज़ल-झूठ की तकरीर बच गयी" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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