समय चक्र में घूम
रहे जब मीत बदल जाते हैं
उर अलिन्द में झूम
रहे नवगीत मचल जाते हैं
जब मौसम अंगड़ाई
लेकर झाँक रहा होता है,
नये सुरों के साथ
सभी संगीत बदल जाते हैं
उपवन में जब नये
पुष्प अवतरित हुआ करते हैं,
पल्लव और परिधानों
के उपवीत बदल जाते हैं
चलते-चलते
भुवन-भास्कर जब कुछ थक जाता है,
मुल्ला-पण्डित के
पावन उद्-गीथ बदल जाते हैं
जीवन का अवसान देख
जब यौवन ढल जाता है,
रंग-ढंग, आचरण, रीत और प्रीत बदल
जाते हैं
रात अमावस में
"मयंक" जब कारा में रहता है,
कृष्ण-कन्हैया के
माखन नवनीत बदल जाते हैं
|
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रविवार, 26 अक्तूबर 2014
"ग़ज़ल-नवगीत मचल जाते हैं" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक)
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बेहतरीन प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसुंदर गजल !
जवाब देंहटाएंपरिवर्तन ही है जग का क्रम!
जवाब देंहटाएंसुन्दर भाव पूर्ण ग़ज़ल ... नए संकेत देती ...
जवाब देंहटाएंBehad sunder gazal.... !!
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