![]() मीत का साथ निभाओ तो कोई बात बने। गीत में साज बजाओ तो कोई बात बने।। एक दिन मौज मनाने से क्या भला होगा? रोज त्यौहार मनाओ तो कोई बात बने। इन बनावट के उसूलों में धरा ही क्या है? प्रीत की जोत जगाओ तो कोई बात बने। क्यों खुदा कैद किया दैर-ओ-हरम में यारों, रब को सीने में सजाओ तो कोई बात बने। सिर्फ पुतलों के जलाने से फायदा क्या है? दिल के रावण को जलाओ तो कोई बात बने।
“रूप” की धूप रहेगी न सलामत नादां,
योग में ध्यान लगाओ तो कोई बात बने।
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शनिवार, 4 अक्तूबर 2014
"ग़ज़ल-कोई बात बने" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
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बहुत सुंदर प्रस्तुति.
जवाब देंहटाएंइस पोस्ट की चर्चा, रविवार, दिनांक :- 05/10/2014 को "प्रतिबिंब रूठता है” चर्चा मंच:1757 पर.
प्रीत की जोत जगाओ तो कोई बात बने
जवाब देंहटाएंबहुत ही खूबसूरत रचना , आ. धन्यवाद !
जवाब देंहटाएंInformation and solutions in Hindi ( हिंदी में समस्त प्रकार की जानकारियाँ )
वाह सुंदर रचना ।
जवाब देंहटाएंवाह क्या बात
जवाब देंहटाएंऐसी बात बन जाय तो क्या बात है !
जवाब देंहटाएंबहुत ही खूबसूरत ...सादर नमस्ते
जवाब देंहटाएंAisa ho to zaroor kuch baar bane ..... Bahut sunder prastuti !!
जवाब देंहटाएंसिर्फ पुतलों के जलाने से फायदा क्या है?
जवाब देंहटाएंदिल के रावण को जलाओ तो कोई बात बने।
बहुत ही खूबसूरत ...सादर नमस्ते
सुंदर संदेश देती गज़ल .
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