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जन्म हिमालय पर लिया, नमन आपको मात।
शैलसुता के नाम से, आप हुईं विख्यात।।
कठिन तपस्या से मिला, ब्रह्मचारिणी नाम।
तप के बल से पा लिया, शिवशंकर का धाम।।
चन्द्र और घंटा रहे, जिनके हरदम पास।
घंटाध्वनि से हो रहा, दिव्यशक्ति आभास।।
जगजननी माता बनी, जग की सिरजनहार।
कूष्मांडा ने रचा, सारा ही संसार।।
मूरख भी ज्ञानी बने, कृपा करे जब मात।
स्कन्दमाता अब धरो, मेरे सिर पर हाथ।।
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योग-साधना से मिटे, क्षोभ-लोभ औ’ काम।
माता कात्यायिनी का, बैजनाथ है धाम।।
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कालरात्री का करो, सच्चे मन से जाप।
दुर्गाजी निज भक्त का, हर लेती हैं ताप।।
सद्यशक्ति का पुंज हैं, देती हैं परित्राण।
महागौरि श्वेताम्बरा, करती हैं कल्याण।।
देती सारी सिद्धियाँ, सिद्धिदात्रि मात।
नवमरूप में रम रहीं, माता सबके साथ।।
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मर्यादा की जीत है, मक्कारी की हार।
विजयादशमी विजय का, है पावन त्यौहार।।
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माँ दुर्गा की स्तुति में भक्ति भाव से ओत प्रोत बहुत ही सुन्दर रचना ! नवरात्रि एवं विजयादशमी की आपको सपरिवार हार्दिक शुभकामनायें !
जवाब देंहटाएंआपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल शुक्रवार (03.10.2014) को "नवरात महिमा" (चर्चा अंक-1755)" पर लिंक की गयी है, कृपया पधारें और अपने विचारों से अवगत करायें, चर्चा मंच पर आपका स्वागत है, धन्यबाद।दुर्गापूजा की हार्दिक शुभकामनायें।
जवाब देंहटाएंमाँ के सभी रूप मंगलमय हैं ,नत मस्तक हूँ !
जवाब देंहटाएंॐ नमो भगवती - http://goo.gl/65uwlQ
जवाब देंहटाएंविजय दशमी की शुभकामनाएँ
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंविजयादशमी की हार्दिक शुभकामनाएं!
माँ दुर्गा के सभी रूपों का मनोहारी वर्णन । सादर वन्दन ।
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