!! चन्दा-मामा !!
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शरदपूर्णिमा है जब आती।
चमक चाँद की तब बढ़
जाती।।
धरती पर अमृत टपकाता।
इसका सबको “रूप” सुहाता।।
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नभ में कैसा दमक
रहा है।
चन्दा कितना चमक
रहा है।।
कभी बड़ा मोटा हो
जाता।
और कभी छोटा हो
जाता।।
करवा-चौथ पर्व जब
आता।
चन्दा का महत्व बढ़
जाता।।
महिलाएँ छत पर जाकर
के।
इसको तकती हैं
जी-भर के।।
यह सुहाग का शुभ
दाता है।
इसीलिए पूजा जाता
है।।
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जब भी बादल छा जाता
है।
तब मयंक शरमा जाता
है।।
लुका-छिपी का खेल
दिखाता।
छिपता कभी प्रकट हो
जाता।।
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धवल चाँदनी लेकर
आता।
आँखों को शीतल कर
जाता।।
सारे जग से न्यारा
मामा।
सब बच्चों का
प्यारा मामा।।
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बुधवार, 8 अक्तूबर 2014
"बालकविता-चन्दा कितना चमक रहा है" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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सुंदर रचना, क्षमा चाहुंगा मगर बाल कविता है क्या ये..??
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति...
जवाब देंहटाएंChanda mama ki bahut hi umda baal kavita ..... Aabhaar !!
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर बाल कविता !
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर.
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 9-10-2014 को चर्चा मंच पर चर्चा - 1761 में दिया गया है
जवाब देंहटाएंआभार
खुबसूरत रचनाएँ... चित्र भी सहसा बोल पड़ रहे हैं
जवाब देंहटाएंसब थे उसकी मौत पर (ग़जल 2)
बेहतरीन रचना, शरद पूर्णिमा की स्वच्छ चांदनी चमकती हुई
जवाब देंहटाएंशरद की चाँदनी जैसी कविता ऍ
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