आसमान में जो उगते हैं, वो बादल कहलाते हैं
जो मुद्दत से तरस से
थे, जल के बिना अधूरे थे,
उन सूखे नदिया-नालों
को, निर्मल नीर पिलाते हैं
चरैवेति का पाठ पढ़ाने, जो धरती पर आकर के
पतितपावनी गंगा को जो, सागर तक ले जाते हैं
बंजर वसुन्धरा में जो, हरियाली लेकर आते हैं
आसमान में जो उगते हैं, वो बादल कहलाते हैं
जिन्हें देखकर
पागल-मधुकर, गुंजन करने को आते,
वीराने उपवन में भी, जो सुन्दर सुमन खिलाते हैं
आहट से बादल की, जन-जीवन में सुख भर जाता है
मुरझाये चेहरे भी
जिनको, देख-देख मुस्काते हैं
पौध धान की तो बारिश
के, इन्तजार में रहती है
श्रमिक-किसानों के
जीवन में, रोज़गार को लाते हैं
जल ही जिनका जीवन है, वो नभ को तकते रहते हैं
दादुर-मोर-पपीहा के, जीवन में खुशियाँ लाते हैं
बादल से ही इन्द्रदेव
का, नाम हमेशा जुड़ा हुआ
इन्द्रधनुष का चौमासे
में, ‘रूप’ हमें
दिखलाते हैं
|
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सोमवार, 1 जुलाई 2019
ग़ज़ल "इन्द्रधनुष का रूप हमें दिखलाते हैं" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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