भूमिका
कुछ माह पूर्व मुझे श्रीमती पुष्पा मेहरा द्वारा रचित दोहा संग्रह "तिनका-तिनका" की पाण्डुलिपि भूमिका लिखने हेतु प्राप्त हुई थी। आज जब "तिनका-तिनका" की प्रति मिली तो मुझे अपार हर्ष हुआ। पेपरबैक संस्करण में शब्दांकुर प्रकाशन, नई-दिल्ली द्वारा प्रकाशित 112 पृष्ठों की इस दोहाकृति का मूल्य मात्र रु. 150-00 है। जिसे शब्दांकुर प्रकाशन J-IInd, madangir, New-Delhi-110062 से प्राप्त किया जा सकता है। ![]()
दोहासंग्रह “तिनका-तिनका” का प्रारम्भ कवयित्री ने दोहों में माँ वीणापाणि की वन्दना से करते हुए
लिखा है-
“हे
माँ वीणावादिनी, वन्दन कर स्वीकार।
शब्द-शब्द में भर
सकूँ, सारे जग का प्यार।।“
आपने अपने दोहों को तुलसी, कबीर-रहीम से भी
चार कदम आगे चलकर मन्त्रों की संज्ञा देते हुए लिखा है-
“शब्द
नहीं ये मन्त्र हैं, जाने सकल जहान।
नवरस और अलंकरण, देते
इनको जान।।“
भारत में रहने वाले हर एक भारतीय को अपनी राष्ट्रभाषा देवनागरी हिन्दी
से प्यार होना चाहिए। यही भाव को आपके दोहों में स्पष्ट परिलक्षित होता है। आपने
अपने दोहों में हिन्दी की व्यथा को कुछ इस प्रकार से कहा है-
“हिन्दी
भूखी न्याय की, रह सदा ही मौन।
शब्द शब्द से
पूछता, तुमसे आगे कौन।।
भारत देश महान है, हिन्दी
इसकी जान।
कह-कह बरस बिता
दिये, दिया न अब तक मान।।“
शिक्षण पेशे से जुड़े होने के कारण आपने “तिनका-तिनका”
में “गुरू ज्ञान का दूत” शीर्षक से अनुपम दोहों का समावेश किया है-
“ज्ञान-मूल
गुरु सींचते, जन हितकारी जान।
उत्तम फल की कामना, है
इसका प्रतिमान।।“
नारी
होने के नाते दोहाकारा श्रीमती पुष्पा मेहरा ने “सृष्टि का
सार नारी” शीर्षक के सुन्दर दोहे रचे हैं। उदाहरण के लिए
निम्न दोहा दृष्टव्य है-
“नारी
फूल समान है, नारी है पाषाण।
नारी जीवन सूत्र
सी, नारी जग की शान।।“
अपने इसी अन्दाज मॆं “बेटियो पर भी कलम चलाते हुए
आप लिखती हैं-
“बेटी
ही नारी बने, वही सृष्टि का सार।
हाथ जोड़ विनती
यही, कन्या भ्रूण न मार।।“
“तिनका-तिनका” दोहा संग्रह एक विविधवर्णी
दोहों का संकलन हैं। जिसमें ऋतुओं और पर्वों पर भी विदूषी कवयित्री ने अपनी
लेखनी चलाई है। उदाहरणस्वरूप देखिए उनके कुछ उम्दा दोहरे-
“सरसों
फूली खेत में, बिखरी मदिर सुवास।
जंगल में मंगल हुआ, हँसने
लगे पलाश।।
--
नफरत की होली जली, उड़ा
अबीर-गुलाल।
रंगों में हैं
भीगते, भारत माँ के लाल।।
--
जेठ मास की धूप की, आतिस
ओढ़े पर्ण।
छाया शीतल दे रहे, भले
पीत हो वर्ण।।“
उत्तर प्रदेश के मौरावाँ, ज़िला उन्नाव में १० जून, १९४१ को जन्मी श्रीमती पुष्पा मेहरा की अब तक अपना राग, अनछुआ आकाश, रेशा-रेशा , आड़ी-तिरछी
रेखाएँ (काव्य - संग्रह ) के नाम से चार
पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी है और “तिनका-तिनका” दोहा संग्रह प्रकाशित होने वाली आपकी पाँचवी पुस्तक है। आपने साहित्य लेखन को अपना शगल बनाकर निरंतर सृजन किया है और आज भी लेखन
कार्य में लगी रहती हैं।
“तिनका-तिनका” दोहासंकलन को पढ़कर
मैंने अनुभव किया है कि कवयित्री पुष्पा मेहरा ने भाषिक सौन्दर्य के साथ दोहे की
सभी विशेषताओं का संग-साथ लेकर जो निर्वहन किया है वह अत्यन्त सराहनीय है।
मुझे
पूरा विश्वास है कि पाठक इस दोहा संग्रह को पढ़कर अवश्य लाभान्वित होंगे और यह कृति समीक्षकों की दृष्टि से भी उपादेय
सिद्ध होगी।
अन्त में आपके दीर्घ जीवन की कामना करते हुए आशा करता हूँ की “तिनका-तिनका” दोहासंग्रह
मानदण्डों की गगनचुम्बी ऊँचाइयों अवश्य छुएगा।
(डॉ. रूपचन्द्र
शास्त्री ‘मयंक’)
कवि एवं
साहित्यकार
टनकपुर-रोड, खटीमा
जिला-ऊधमसिंहनगर
(उत्तराखण्ड) 262 308
सम्पर्क-7906360576
E-Mail . roopchandrashastri@gmail.com
Website. http://uchcharan.blogspot.com.
|
"उच्चारण" 1996 से समाचारपत्र पंजीयक, भारत सरकार नई-दिल्ली द्वारा पंजीकृत है। यहाँ प्रकाशित किसी भी सामग्री को ब्लॉग स्वामी की अनुमति के बिना किसी भी रूप में प्रयोग करना© कॉपीराइट एक्ट का उलंघन माना जायेगा। मित्रों! आपको जानकर हर्ष होगा कि आप सभी काव्यमनीषियों के लिए छन्दविधा को सीखने और सिखाने के लिए हमने सृजन मंच ऑनलाइन का एक छोटा सा प्रयास किया है। कृपया इस मंच में योगदान करने के लिएRoopchandrashastri@gmail.com पर मेल भेज कर कृतार्थ करें। रूप में आमन्त्रित कर दिया जायेगा। सादर...! और हाँ..एक खुशखबरी और है...आप सबके लिए “आपका ब्लॉग” तैयार है। यहाँ आप अपनी किसी भी विधा की कृति (जैसे- अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कर सकते हैं। बस आपको मुझे मेरे ई-मेल roopchandrashastri@gmail.com पर एक मेल करना होगा। मैं आपको “आपका ब्लॉग” पर लेखक के रूप में आमन्त्रित कर दूँगा। आप मेल स्वीकार कीजिए और अपनी अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कीजिए। |
Linkbar
फ़ॉलोअर
शनिवार, 27 जुलाई 2019
"तिनका-तिनका की भूमिका" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
-
नये साल की नयी सुबह में, कोयल आयी है घर में। कुहू-कुहू गाने वालों के, चीत्कार पसरा सुर में।। निर्लज-हठी, कुटिल-कौओं ने,...
-
कुहरे ने सूरज ढका , थर-थर काँपे देह। पर्वत पर हिमपात है , मैदानों पर मेह।१। -- कल तक छोटे वस्त्र थे , फैशन की थी होड़। लेक...
-
सपना जो पूरा हुआ! सपने तो व्यक्ति जीवनभर देखता है, कभी खुली आँखों से तो कभी बन्द आँखों से। साहित्य का विद्यार्थी होने के नाते...
सम्माननीय शास्त्री जी हार्दिक आभार
जवाब देंहटाएं