निर्धनता के जो रहे, जीवनभर पर्याय।
लमही में पैदा हुए, लेखक धनपत राय।।
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आम आदमी की व्यथा, लिखते थे जो नित्य।
प्रेमचन्द ने रच दिया, सरल-तरल साहित्य।।
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जीवित छप्पन वर्ष तक, रहे जगत में मात्र।
लेकिन उनके साथ सब, अमर हो गये पात्र।।
फाकेमस्ती में जिया, जीवन को भरपूर।
उपन्यास सम्राट थे, आडम्बर से दूर।।
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उपन्यास 'सेवासदन', 'गबन' और 'गोदान'।
हिन्दी-उर्दू अदब पर, किया बहुत अहसान।।
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'रूठीरानी' को लिखा, लिक्खा 'मिलमजदूर'।
प्रेमचन्द मुंशी रहे, सदा मजे से दूर।।
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लेखन में जिसका नहीं, झुका कभी किरदार।
उस लमही के लाल को, नमन हजारों बार।।
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बुधवार, 31 जुलाई 2019
दोहे "उपन्यास सम्राट को नमन हजारों बार" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर और सार्थक दोहे ।
जवाब देंहटाएंहिन्दी कथा सम्राट को बारम्बार नमन व प्रणाम...🙏🙏🙏
जवाब देंहटाएंकथा सम्राट की शान में सार्थक दोहे
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