रपटना नहीं, राह
में चलते-चलते
मंजिल सभी को है चलने से मिलती
ठहरना नहीं, राह
में चलते-चलते
रखना नजर प्यार
की मुख़्तसर सी
भड़कना नहीं, राह
में चलते-चलते
सफर काट लो अपना राजी-खुशी
से
झगड़ना नहीं, राह
में चलते-चलते
धीरज न खोना कठिन
रास्तों में
पिछड़ना नहीं,
राह में चलते-चलते
अस्मत की गठरी बचा करके रखना
सँवरना नहीं, राह में चलते-चलते
हाट में ‘रूप’ के मत कदम को बढ़ाना
भटकना नहीं, राह में चलते-चलते
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सोमवार, 29 जुलाई 2019
ग़ज़ल "राह में चलते-चलते" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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सपना जो पूरा हुआ! सपने तो व्यक्ति जीवनभर देखता है, कभी खुली आँखों से तो कभी बन्द आँखों से। साहित्य का विद्यार्थी होने के नाते...
सही मार्गदर्शन !
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंनमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शनिवार (15-05-2021 ) को 'मंजिल सभी को है चलने से मिलती' (चर्चा अंक-4068) पर भी होगी।आप भी सादर आमंत्रित है।
चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।
यदि हमारे द्वारा किए गए इस प्रयास से आपको कोई आपत्ति है तो कृपया संबंधित प्रस्तुति के अंक में अपनी टिप्पणी के ज़रिये या हमारे ब्लॉग पर प्रदर्शित संपर्क फ़ॉर्म के माध्यम से हमें सूचित कीजिएगा ताकि आपकी रचना का लिंक प्रस्तुति से विलोपित किया जा सके।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
#रवीन्द्र_सिंह_यादव
सफर काट लो अपना राजी-खुशी से
जवाब देंहटाएंझगड़ना नहीं, राह में चलते-चलते
धीरज न खोना कठिन रास्तों में
पिछड़ना नहीं, राह में चलते-चलते---बहुत अच्छी रचना और गहरी पंक्तियां आदरणीय शास्त्री जी।