उत्तर से दक्षिण को, भू पर। बहती जल की धार निरन्तर।। -- संसर्गों में जो भी आता, तन-मन से पावन हो जाता, अवगुण हो जाते छूमन्तर। बहती जल की धार निरन्तर।। -- सुनकर कलकल-छलछल के सुर, आनन्दित हो जाता है उर, निर्मल हो जाता है अन्तर। बहती जल की धार निरन्तर।। -- कुदरत का है साज अनोखा, इसमें नही बनावट-धोखा, चलता जाता चक्र निरन्तर। बहती जल की धार निरन्तर।। -- |
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बुधवार, 21 सितंबर 2022
गीत "बहती जल की धार" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 22.9.22 को चर्चा मंच पर चर्चा - 4560 में दिया जाएगा
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
दिलबाग
बहुत सुंदर सर 👌
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर।
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