जिन्दगी चल रही चिमनियों की तरह। बेटियाँ पल रही कैदियों की तरह।। -- लाडलों के लिए पूरे घर-बार हैं, लाडली के लिए संकुचित द्वार हैं, भाग्य इनको मिला कंघियों की तरह। बेटियाँ पल रही कैदियों की तरह।। -- रंक माता-पिता की हैं मुश्किल बढ़ी, ताड़ सी पुत्रियों की हैं चिन्ता खड़ी, भूख वर की बढ़ी भेड़ियों की तरह। बेटियाँ पल रही कैदियों की तरह।। -- शादियों में बहुत माँग जर की बढ़ी, नोट की गड्डियों पर नजर हैं गड़ी, रोग है बढ़ रहा कोढ़ियों की तरह। बेटियाँ पल रही कैदियों की तरह।। -- ये ही पीड़ा हृदय में रहेगी सदा, लेखनी दर्द इनका लिखेगी सदा, इनकी ससुराल है बेड़ियों की तरह। बेटियाँ पल रही कैदियों की तरह।। -- |
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रविवार, 25 सितंबर 2022
गीत "ससुराल है बेड़ियों की तरह" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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जी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार(२६-०९ -२०२२ ) को 'तू हमेशा दिल में रहती है'(चर्चा-अंक -४५६३) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
हृदय स्पर्शी सृजन।अब हालात काफी बदले भी हैं।
जवाब देंहटाएंएक जनक की सीता के प्रति अनुराग सी जिवंत रचना , बेटियों को दुर्गा बनाइये , यही प्रार्थना है !
जवाब देंहटाएंबेटियाँ के यथार्थ की कहानी कहती मार्मिक रचना।
जवाब देंहटाएंमार्मिक रचना, बेटियों की पीड़ा को अभिव्यक्ति देती हुई
जवाब देंहटाएंदहेज़ के लोभियों के घर में बेटी ब्याहने से तो अच्छा हो कि उसका विवाह ही न किया जाए. माँ-बाप के लिए बेटी ब्याहने से बड़ा दायित्व यह है कि उनके किसी भी फ़ैसले से उसके मान-सम्मान पर कोई आंच न आए.
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