♥ कुछ दोहे ♥ मात-पिता तो यत्न से, पाल रहे सन्तान। लेकिन पुत्र न मानते, इनका कुछ अहसान।१। लड़के तो लड़के रहें, लड़ना इनका काम। बेटे ही तो कर रहे, रिश्तों को बदनाम।२। सदा अभावों में पली, सहती जो अपमान। वो बेटी माँ-बाप का, रखती ज्यादा ध्यान।३। महँगाई की मार का, कुछ तो करो विचार। पुत्र मोह की आस में. बढ जाता परिवार।४। |
"उच्चारण" 1996 से समाचारपत्र पंजीयक, भारत सरकार नई-दिल्ली द्वारा पंजीकृत है। यहाँ प्रकाशित किसी भी सामग्री को ब्लॉग स्वामी की अनुमति के बिना किसी भी रूप में प्रयोग करना© कॉपीराइट एक्ट का उलंघन माना जायेगा। मित्रों! आपको जानकर हर्ष होगा कि आप सभी काव्यमनीषियों के लिए छन्दविधा को सीखने और सिखाने के लिए हमने सृजन मंच ऑनलाइन का एक छोटा सा प्रयास किया है। कृपया इस मंच में योगदान करने के लिएRoopchandrashastri@gmail.com पर मेल भेज कर कृतार्थ करें। रूप में आमन्त्रित कर दिया जायेगा। सादर...! और हाँ..एक खुशखबरी और है...आप सबके लिए “आपका ब्लॉग” तैयार है। यहाँ आप अपनी किसी भी विधा की कृति (जैसे- अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कर सकते हैं। बस आपको मुझे मेरे ई-मेल roopchandrashastri@gmail.com पर एक मेल करना होगा। मैं आपको “आपका ब्लॉग” पर लेखक के रूप में आमन्त्रित कर दूँगा। आप मेल स्वीकार कीजिए और अपनी अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कीजिए। |
Linkbar
फ़ॉलोअर
सोमवार, 12 मार्च 2012
"कुछ दोहे" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
लोकप्रिय पोस्ट
-
दोहा और रोला और कुण्डलिया दोहा दोहा , मात्रिक अर्द्धसम छन्द है। दोहे के चार चरण होते हैं। इसके विषम चरणों (प्रथम तथा तृतीय) मे...
-
लगभग 24 वर्ष पूर्व मैंने एक स्वागत गीत लिखा था। इसकी लोक-प्रियता का आभास मुझे तब हुआ, जब खटीमा ही नही इसके समीपवर्ती क्षेत्र के विद्यालयों म...
-
नये साल की नयी सुबह में, कोयल आयी है घर में। कुहू-कुहू गाने वालों के, चीत्कार पसरा सुर में।। निर्लज-हठी, कुटिल-कौओं ने,...
-
समास दो अथवा दो से अधिक शब्दों से मिलकर बने हुए नए सार्थक शब्द को कहा जाता है। दूसरे शब्दों में यह भी कह सकते हैं कि &qu...
-
आज मेरे छोटे से शहर में एक बड़े नेता जी पधार रहे हैं। उनके चमचे जोर-शोर से प्रचार करने में जुटे हैं। रिक्शों व जीपों में लाउडस्पीकरों से उद्घ...
-
इन्साफ की डगर पर , नेता नही चलेंगे। होगा जहाँ मुनाफा , उस ओर जा मिलेंगे।। दिल में घुसा हुआ है , दल-दल दलों का जमघट। ...
-
आसमान में उमड़-घुमड़ कर छाये बादल। श्वेत -श्याम से नजर आ रहे मेघों के दल। कही छाँव है कहीं घूप है, इन्द्रधनुष कितना अनूप है, मनभावन ...
-
"चौपाई लिखिए" बहुत समय से चौपाई के विषय में कुछ लिखने की सोच रहा था! आज प्रस्तुत है मेरा यह छोटा सा आलेख। यहाँ ...
-
मित्रों! आइए प्रत्यय और उपसर्ग के बारे में कुछ जानें। प्रत्यय= प्रति (साथ में पर बाद में)+ अय (चलनेवाला) शब्द का अर्थ है , पीछे चलन...
-
“ हिन्दी में रेफ लगाने की विधि ” अक्सर देखा जाता है कि अधिकांश व्यक्ति आधा "र" का प्रयोग करने में बहुत त्र...
सदा अभावों में पली, सहती जो अपमान।
जवाब देंहटाएंवो बेटी माँ-बाप का, रखती ज्यादा ध्यान !!
सार्थक दोहे सर......
सादर.
आपके दोहे बहत ही उम्दा हैं मयंक जी। सचमुच बेटियाँ आज माता-पिता का नाम रौशन कर रही हैं।
जवाब देंहटाएंसदा अभावों में पली, सहती जो अपमान।
जवाब देंहटाएंवो बेटी माँ-बाप का, रखती ज्यादा ध्यान।३।
सार्थक दोहे......
आपके दोहे बहत ही उम्दा हैं मयंक जी। सचमुच बेटियाँ आज माता-पिता का नाम रौशन कर रही हैं।
जवाब देंहटाएंसदा अभावों में पली, सहती जो अपमान।
वो बेटी माँ-बाप का, रखती ज्यादा ध्यान !!
bahut behtreen dohe sateek ,sarthak .aaj kal blog par adhik samay nahi de paa rahi hoon teen din pahle maa ka dehaant ho gaya bahut dukhi hoon.
जवाब देंहटाएंकन्या के प्रति पाप में, जो जो भागीदार ।
जवाब देंहटाएंरखे अकेली ख्याल जब, कैसे दे आभार ।
कैसे दे आभार, किचेन में हाथ बटाई ।
ढो गोदी सम-आयु, बाद में रुखा खाई ।
हो रविकर असमर्थ, दबा दें बेटे मन्या *।
सही उपेक्षा रोज, दवा दे वो ही कन्या ।
*गर्दन के पीछे की शिरा
दिनेश की टिप्पणी : आपका लिंक
dineshkidillagi.blogspot.com
कितने सुन्दर दोहे हैं सर... !! वाह!
जवाब देंहटाएंसादर आभार.
सदा अभावों में पली, सहती जो अपमान।
जवाब देंहटाएंवो बेटी माँ-बाप का, रखती ज्यादा ध्यान।|
आपने बिलकुल सही कहा बेटो से बेटी ज्यादा
माँ बाप का ध्यान रकहती है
सार्थक सटीक रचना,.....
समाज के कुछ कटु यथार्थ को आपने चित्रित कर दिया है इन दोहों के माध्यम से।
जवाब देंहटाएंमहँगाई की मार का, कुछ तो करो विचार।
जवाब देंहटाएंपुत्र मोह की आस में. बढ जाता परिवार।४।
बेहतरीन प्रस्तुति ,आभार .
सार्थक रचना !
जवाब देंहटाएंप्रेरणादायक सार्थक रचना।
जवाब देंहटाएंआपको शब्दों की महारत है। इतनी सरलता से बात को प्रभावी बना देना तो तभी संभव है जब शब्द आपकी बात मानते हों।
जवाब देंहटाएंबेटियों से ही बेटे मिलते हैं. धन्यवाद.
जवाब देंहटाएंसार्थक व सटीक दोहे।
जवाब देंहटाएंसुंदर व सार्थक रचना....--
जवाब देंहटाएंमहँगाई की मार का, कुछ तो करो विचार।
जवाब देंहटाएंपुत्र मोह की आस में. बढ जाता परिवार...
क्या बात कह दी शास्त्री जी...बहुत खूब...
सार्थक दोहे बहुत खूब हैं
जवाब देंहटाएंसमझते नहीं हैं लोग
करते हैं फिर वही गलती
फिर कहते हैं आगे डूब है !