लुप्त हुआ है काव्य का, नभ में सूरज आज। बिनाछन्द रचना रचें, ज्यादातर कविराज।१। जिसमें हो कुछ गेयता, काव्य उसी का नाम। रबड़छंद का काव्य में, बोलो क्या है काम।२। अनुच्छेद में बाँटिए, कैसा भी आलेख। छंदहीन इस काव्य का, रूप लीजिए देख।३। चार लाइनों में मिलें, टिप्पणियाँ चालीस। बिनाछंद के शान्त हों, मन की सारी टीस।४। बिन मर्यादा यश मिले, गति-यति का क्या काम। गद्यगीत को मिल गया, कविता का आयाम।५। अपना माथा पीटता, दोहाकार मयंक। गंगा में मिश्रित हुई, तालाबों की पंक।६। कथा और सत्संग में, कम ही आते लोग। यही सोचकर हृदय का, कम हो जाता रोग।७। गीत-ग़ज़ल में चल पड़ी, फिकरेबाजी आज। कालजयी रचना कहाँ, पाये आज समाज।८। देकर सत्साहित्य को, किया धरा को धन्य। तुलसी, सूर-कबीर से, हुए न कोई अन्य।९। |
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Sunder, Sateek Dohe...
जवाब देंहटाएंआपने ठीक लिखा है .सार्थक अभिव्यक्ति ह्रदय की व्यथा की .आभार
जवाब देंहटाएंGreat post, you have pointed out some superb details, I will tell my friends that this is a very informative blog thanks.
जवाब देंहटाएंIT Company India
छंद हीनता के मजे, शास्त्री जी हैं ढेर ।
जवाब देंहटाएंप्रतिपादन भाए बहुत, रत्न युक्त ये शेर ।
रत्न जड़े ये शेर, बड़े नखरोट उकेरे ।
बिना सूत्र की माल, रचयिता चतुर चितेरे ।
बिन टिप्पण बद-हाल, छंदमय रचना करता ।
बदलूँ यह लय ताल, राह से नई गुजरता ।।
जवाब देंहटाएं♥
समझे पीड़ा आपकी , आप सरीखा कोय !
मत कीजे कछु दुख मना ! राम करे सो होय !!
परम प्रिय आदरणीय डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक जी
सादर प्रणाम !
आपकी मात्र इस प्रविष्टि से ही नहीं , अपितु आपके संपूर्ण काव्य से अभिभूत हूं मैं …
आपका काव्य इस युग के लिए सौभाग्य है …
छंद बद्ध काव्य के साधकों के लिए प्रेरणा पुंज है …
हर सरस्वती-सुत के लिए आश्वस्ति संतुष्टि का कारण है …
शत शत नमन है आपको और आपकी लेखनी को !!
*दुर्गा अष्टमी* और *राम नवमी*
सहित
~*~नवरात्रि और नव संवत्सर की बधाइयां शुभकामनाएं !~*~
शुभकामनाओं-मंगलकामनाओं सहित…
- राजेन्द्र स्वर्णकार
दोहे बहुत अच्छे और सार्थक है....आज की कविता कुछ कुछ ऐसे ही रूप में सामने आ रही है.
जवाब देंहटाएंशानदार व्यंग्यात्मक प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया सर...
जवाब देंहटाएंव्यंग बाणों से सजी...
अपना माथा पीटता, दोहाकार मयंक।
गंगा में मिश्रित हुई, तालाबों की पंक।६।
लाजवाब!!!
सादर.
अपना माथा पीटता, दोहाकार मयंक।
जवाब देंहटाएंगंगा में मिश्रित हुई, तालाबों की पंक।६।
देकर सत्साहित्य को, किया धरा को धन्य।
तुलसी, सूर-कबीर से, हुए न कोई अन्य।९।
जैसे पंडित वेद विहीना ,तैसे कविता छंद विहीना ....
जैसे पंडित वेद विहीना ,तैसे कविता छंद विहीना ....
बढ़िया प्रस्तुति .....छंद मुक्त कविता स्वेच्छा चारिणी .....नारीत्व -हीना .
काव्य का सारा विश्लेषण सरल भाषा में बता दिया।
जवाब देंहटाएंbahut hi achchi rachna --------bahut sundar dohe
जवाब देंहटाएंतुलसी, सूर-कबीर से, हुए न कोई अन्य।९।
जवाब देंहटाएंसत्य!
बिम्ब और प्रतीकों के प्रयोग से चमत्कारिक सृजन मुक्त छंद में भी रस धार बहा देती है... इस विधा में गुलज़ार साहब मील के पत्थर हैं ...
जवाब देंहटाएंब्लॉग जगत में भी बहुत अच्छे छंदमुक्त रचनाएं पढने को मिलती हैं....
लेकिन छंद विलुप्तता पर आपकी चिंता एकदम सटीक व्यंग्य और मन को छूते भावों से प्रस्फुटित हुई है सर... सचमुच छंदों का आनंद अलौकिक है, और छंद सृजन सभी रचनाकारों का दायित्व है...
सादर नमन.
sateek aur badhia vyang baan.sashaqt rachna ki badhaai.
जवाब देंहटाएंआपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति भी है,
जवाब देंहटाएंआज चर्चा मंच पर ||
शुक्रवारीय चर्चा मंच ||
charchamanch.blogspot.com
बढिया
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
sateek prastuti.
जवाब देंहटाएंनए प्रयोगों में विविधता तो आई है पर गायन व अनुराक्तियाँ काव्य से बिलग होने लगी हैं ...... मुखर भाव सहजता समेटे प्रखर हैं ... सुन्दर /
जवाब देंहटाएंवाह ! ! ! ! ! बहुत खूब,शास्त्री जी
जवाब देंहटाएंसुंदर करारी रचना, बेहतरीन मन के भावों की प्रस्तुति,..
MY RECENT POST ...फुहार....: बस! काम इतना करें....
आधुनिक जीवन का प्रति -बिम्बन है छंद मुक्त कविता ,
जवाब देंहटाएंन लय,न गति ,न ताल ,
अनावरण वक्ष लिए ,कड़ी एक बाला ,
लिए हाथ भाला ,अधरों से लगाए ,
चाय का प्याला .
बहुत सुन्दर !!!
जवाब देंहटाएंkalamdaan.blogspot.in
वाह शास्त्री जी, छंद में लिखी गयी कविता का आनन्द ही और होता है.
जवाब देंहटाएंचार लाइनों में मिलें, टिप्पणियाँ चालीस।
जवाब देंहटाएंबिनाछंद के शान्त हों, मन की सारी टीस।
आपकी लेखनी और सोच को दाद देनी पड़ेगी। किस-किस विषय पर इतनी अच्छी रचना आप कर लेते हैं, हम तो सोच भी नहीं सकते।
सर यह इतना कठिन कार्य है कि आम आदमी के सर के ऊपर से जाता है छंद बद्ध लेखन |पर मन तो होता है अपने विचार लिखने का |
जवाब देंहटाएंअच्छी रचना के लिए बधाई स्वीकार करें |
आशा
रस से रसहीन समुंदर में जाते जा रहे है
जवाब देंहटाएंकुछ कवि मजबूरी की कविता बना पा रहे हैं
छंद लिखना तो दूर सोच भी कहां पा रहे हैं
आप बिल्कुल सही बात फरमा रहे हैं
आप छंद लिखिये हम गोते लगायेंगे
पर कभी कभी आपको अपनी रसहीन छंदहीन
कविताऎं थोड़ी थोड़ी तो पढ़ायेंगे ।
वाह!
जवाब देंहटाएंयह तो हर जगह उद्घृत करने वाली रचना है.
आजकल की कविताई का सटीक, परिपूर्ण विश्लेषण है, वह भी इन चंद पंक्तियों में.
आभार,
जवाब देंहटाएंरविशंकर श्रीवास्तव जी!
आप मेरे यहाँ पहली बार आये धन्य हो गया हूँ, आपकी टिप्पणी से!