मौसम ने ली है अँगड़ाई। गेहूँ की बालियाँ सुखाने, पछुआ पश्चिम से है आई।। पर्वत का हिम पिघल रहा है, निर्झर बनकर मचल रहा है, जामुन-आम-नीम गदराये, फिर से बगिया है बौराई। गेहूँ की बालियाँ सुखाने, पछुआ पश्चिम से है आई।। ![]() रजनी में चन्दा दमका है, पूरब में सूरज चमका है, फुदक-फुदककर शाखाओं पर, कोयलिया ने तान सुनाई। गेहूँ की बालियाँ सुखाने, पछुआ पश्चिम से है आई।। वन-उपवन की शान निराली, चारों ओर विछी हरियाली, हँसते-गाते सुमन चमन में, भँवरों ने गुंजार मचाई। गेहूँ की बालियाँ सुखाने, पछुआ पश्चिम से है आई।। सरसों का है रूप सलोना, कितना सुन्दर बिछा बिछौना, मधुमक्खी पराग लेने को, खिलते गुंचों पर मँडराई। गेहूँ की बालियाँ सुखाने, पछुआ पश्चिम से है आई।। |
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बुधवार, 28 मार्च 2012
"मौसम ने ली है अँगड़ाई" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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बदलते मौसम का बहुत सुन्दर वर्णन....सुन्दर तस्वीरों के साथ....
जवाब देंहटाएंmausam badal jaye ...par aapki abhivyakti sunder hi rahegi ...!!
जवाब देंहटाएंshubhkamnayen ..!
बहुत सुन्दर शास्त्री जी...
जवाब देंहटाएंमनभावन...
सादर.
वाह !! बढ़िया प्रकृति चित्रण ।।
जवाब देंहटाएंपके कनक की बालियाँ
मधुप चूस मकरंद ।
सरसों सोहे साथ में
फलते आम जामुन नीम
बढ़िया छंद ।।
जामुन-आम-नीम गदराये,
जवाब देंहटाएंफिर से बगिया है बौराई।
गेहूँ की बालियाँ सुखाने,
पछुआ पश्चिम से है आई।।
बहुत सुन्दर, शास्त्री जी !
बदले मौसम का बहुत सही से चित्रण
जवाब देंहटाएंजामुन-आम-नीम गदराये,
जवाब देंहटाएंफिर से बगिया है बौराई।
गेहूँ की बालियाँ सुखाने,
पछुआ पश्चिम से है आई।।
शास्त्रीजी बहुत ही सुन्दर रचना
सुंदर अतिसुन्दर अच्छी लगी, बधाई
जवाब देंहटाएंप्राकृतिक उपालाम्भों को आप बखूबी सहेजते हैं ..
जवाब देंहटाएंवाह !!!!! बहुत सुंदर मनभावन रचना,....
जवाब देंहटाएंMY RECENT POST...काव्यान्जलि ...: तुम्हारा चेहरा,
acha hai angdai le le mausam ab...
जवाब देंहटाएंनये मौसम के आगमन की तैयारी है।
जवाब देंहटाएंAap bahut acha likhte hai.
जवाब देंहटाएंप्रकृति नटी श्रृंगार करे और आप निहारें यह यह अच्छी बात नहीं है .अच्छी पोस्ट .प्रकृति का मानवीकरण करती हुई .
जवाब देंहटाएंकुछ दिनों से अपनी उपस्थिति नहीं दे पा रही हूँ ,कंप्यूटर खराब हो गया है ..
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर लिखा है...
kalamdaan.blogspot.in
आपकी पोस्ट कल 29/3/2012 के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
जवाब देंहटाएंकृपया पधारें
http://charchamanch.blogspot.com
चर्चा - 833:चर्चाकार-दिलबाग विर्क
प्रकृति का मनोहारी चित्रण... बहुत बढ़िया
जवाब देंहटाएंसुन्दर गीत सर.
जवाब देंहटाएंसादर.
बहुत सुन्दर शास्त्री जी..
जवाब देंहटाएं